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अक्तूबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

क्रोध आता नहीं , बुलाया जाता है

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कितनी आसानी से कह देते हैं न हम कि  क्या करें गुस्सा आ गया था ...   गुस्से में कह दिया....                        गुस्सा !!    गुस्सा (क्रोध) आखिर बला क्या है ?                    सोचें तो जरा !     क्या सचमुच क्रोध आता है.....?     मेरी नजर में तो नहीं     क्रोध आता नहीं     बुलाया जाता है     सोच समझ कर     हाँ !  सोच समझ कर    किया जाता है गुस्सा   अपनी सीमा में रहकर......     हाँ ! सीमा में  !!!!    वह भी    अधिकार क्षेत्र की ......    तभी तो कभी भी   अपने से ज्यादा   सक्षम पर या अपने बॉस पर   नहीं कर पाते क्रोध   चाहकर भी नहीं......   चुपचाप सह लेते हैं   उनकी झिड़की, अवहेलना   या फिर अपमानजनक डाँट   क्योंकि जानते हैं   कि भलाई है सहने में...... ...

शरद पूनम के चाँद

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अब जब सब प्रदूषित है तुम प्रदूषण मुक्त रहोगे न ? शरद पूनम के चाँद हमेशा धवल चाँदनी दोगे न ? खीर का दोना रखा जो छत पे अमृत उसमें भर दोगे न ? सोलह कलाओं से युक्त चन्द्र तुम पवित्र सदा ही रहोगे न ? चाँदी से बने,सोने से सजे तुम आज धरा के कितने करीब ! फिर भी उदास से दिखते मुझे क्या दिखती तुम्हें भी धरा गरीब ? चौमासे की अति से दुखी धरा का कुछ तो दर्द हरोगे न ? कौजागरी पूनम के चन्द्र हमेशा सबके रोग हरोगे न ? सूरज ने ताप बढ़ाया अपना  सावन भूला रिमझिम सा बरसना ऐसे ही तुम भी "ओ चँदा " ! शीतलता तो नहीं बिसरोगे न ? रास पूनम के चन्द्र हमेशा रासमय यूँ ही रहोगे न ? शरद पूनम के चाँद हमेशा  धवल चाँदनी दोगे न ?                                     चित्र साभार गूगल से..

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