ठुड्डी को हथेली में टिकाए उदास बैठी बिन्नी से माँ ने बड़े प्यार से पूछा, "क्या हुआ बेटा ये उदासी क्यों"? "मम्मा ! आज मेरे इंग्लिश के मार्क्स पता चलेंगें " "तो ? आपने तो अच्छी तैयारी की थी न एक्जाम की !फिर डर क्यों ? मम्मा ! मुझे लगता है, मैं फेल हो जाउंगी। अरे ! नहीं बेटा ! शुभ-शुभ बोलो, और अच्छा सोचो ! वो कहते हैं न , बी पॉजिटिव ! हम्म, कहते तो हैं पर क्या करूं मम्मा ! खुशी चाहिए तो गंदा सोचना ही पड़ता है । अरे ! ये क्या बात हुई भला ! अच्छा सोचोगे तब अच्छा होगा न ! और बुरा सोचोगे तो बुरा ही होगा, खुशी भी कहाँ से मिलेगी बेटा ! ओह मम्मा ! अच्छा सोचती हूँ तो एक्सपेक्टेशन बढ़ती है, फिर जो भी मार्क्स आते हैं वो कम लगने लगते हैं, फिर दुखी होती हूँ । और इसके अपॉजिट बुरा सोचकर एक्सपेक्टेशन खतम, फिर जो भी मार्क्स आयें वो खुशी देते हैं । इसीलिये खुशी चाहिए तो बुरा सोचना ही पड़ता है मम्मा ! हैं ! कहते हुए अब माँ असमंजस में पड़ गयी। चित्र ,साभार गूगल से पढ़िए एक लघु कहानी ● सोसायटी में कोरोना की दस्तक