पाई-पाई जोड़ती
कमाई अठन्नी पर खरचा रुपया कर
तिस पे मंहगाई देखो कमर है तोड़ती
सिलटी दुफटी धोति तन लाज ढ़क रही
पेट काट अपना वो पाई-पाई जोड़ती।
तीस में पचास सी बुढ़ायी गयी सूरत से
व्याधियां भी हाड़ -मांस सब हैं निचोड़ती
सूट-बूट पहन पति,नजर फेर खिसके आज
अकल पे निज अब , सर-माथ फोड़ती।
मन तोड़ पाई जोड़ , संचित करे जो आज
रोगन शिथिल तन , कुछ भी न सोहती
सेहत अनमोल धन, बूझि अब दुखी मन
मन्दमति जान अपन भाग अब कोसती।
चित्र साभार ' pixabay .com'
टिप्पणियाँ
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
सादर आभार।
सादर आभार।
पेट काट अपना वो पाई-पाई जोड़ती।
मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती ब्यथा।भावपूर्ण। बहुत सुंदर।
रोगन शिथिल तन , कुछ भी न सोहती
गरीब स्त्री क्या क्या सहन कर पाई पाई जोड़ती है इसका बहुत मार्मिक चित्रण .
साधुवाद 🙏
सस्नेह आभार।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सादर आभार।
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
इस असाधारण रचना की प्रशंसा मैं भला क्या करूं ? मैं स्वयं को इस योग्य ही अनुभव नहीं करता ।
ये तो अतिशयोक्ति है आदरणीय!आपसे ही सीखा है ....फिर.?
सादर आभार आपका।
मनोदशा का मार्मिक चित्रण
सच बात है जब दुख आते हैं तो कई तरह के आटे हैं
जिनसे जूझना दुखदायी होता है
भावपूर्ण रचना
सादर
सादर आभार।
रोगन शिथिल तन , कुछ भी न सोहती
मार्मिक भावाभिव्यक्ति ।
अप्रतिम सृजन।
लेकिन कब तक नारी की निस्वार्थ-सेवा, पूर्ण समर्पण, त्याग और बलिदान की यह कहानी चलती रहेगी?
सादर आभार।
बहुत अच्छी रचना है ...