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माँ तो माँ है

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माँ का प्यार और समर्थन हमें सिर्फ बचपन में ही नहीं अपितु जीवन के हर संघर्षों में आत्मविश्वास के साथ खड़े होने की हिम्मत देता है । माँ की ममता और आशीर्वाद का एहसास होते ही हर मुश्किल का सामना करना सम्भव हो जाता है । और माँ के पास बैठते ही तमाम संघर्षों की थकन और दर्द छूमन्तर हो जाते हैं । आज मातृ-दिवस पर सभी मातृ-शक्तियों को नमन, वंदन, हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं । बहुत समय बाद कुछ दिनों के लिए माँ का सानिध्य मिला । माँ तो माँ है । मेरी लेखनी में इतना दम कहाँ कि माँ को लिख सकूँ , हाँ ! माँ की दिनचर्या लिखकर यादें संजोने की कोशिश कर रही हूँ ।                        ब च्चे बड़े हुए बेटियाँ विदा हुई बेटे भी नौकरीपेशा हुए । समय बदला , स्थान तक बदल गये । माँ को भी सास , नानी , दादी की डिग्रियां मिली। पर माँ है कि हमेशा माँ ही रही। वैसी ही फिकर , वैसी ही परवाह ,और वैसी ही व्यस्तता ।  कभी बच्चों के खानपान , स्कूल, पढाई के साथ ही गाय- बच्छी और खेत-खलिहान की परवाह तो अब तड़के सुबह फूल, पौधे, चिड़ियों के दाने पानी की परवाह ।  और तो और गली में घूमती गायें और उनके बछड़े ऊँचे गेट के कुण्डे पर सींग मारकर

कटता नहीं बक्त, अब नीड़ भी रिक्त

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  वो मंजिल को अपनी निकलने लगे हैं, कदम चार माँ-बाप भी संग चले हैं । बीती उमर के अनुभव बताकर आशीष में हाथ बढ़ने लगे हैं । सुबह शाम हर पल फिकर में उन्हीं की अतीती सफर याद करने लगे ह़ै । सफलता से उनकी खुश तो बहुत हैं मगर दूरियों से मचलने लगे हैं । राहें सुगम हों जीवन सफर की दुआएं सुबह शाम करने लगे हैं । मंदिम लगे जब कभी नूर उनका अर्चन में प्रभु पे बिगड़ने लगे हैं । कटता नहीं वक्त,अब नीड़ भी रिक्त परिंदे जो 'पर' खोल उड़ने लगे हैं । ********** पढ़िए एक और गजल इसी ब्लॉग पर ●  सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे-धीरे

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