पावस के कजरारे बादल
पावस के कजरारे बादल, जमकर बरसे कारे बादल , उमस धरा की मिटा न पाए, बरस बरस कर हारे बादल । घिरी घटा गहराये बादल, भर भर के जल लाये बादल, तीव्र ताप से तपी धरा पर, मधुर सुधा बरसाये बादल । सूरज से घबराए बादल, चढ़ी धूप छितराए बादल, उमड़-घुमड़ पहुँचे गिरि कानन, घन घट फट पछताए बादल । भली नहीं अतिवृष्टि बादल, करे याचना सृष्टि बादल, कहीं बाढ़ कहीं सूखा क्यों ? समता की रख दृष्टि बादल ! छोड़ भी दो मनमानी बादल, बहुत हुई नादानी बादल, बरसो ऐसा कि सब बोलें, पावस भली सुहानी बादल । पढ़िए बादलों पर आधारित मेरी एक और रचना ● ये भादो के बादल