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दिसंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

ब्लॉग से मुलाकात..बहुत दिनों बाद

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मेरे ब्लॉग ! देखो मैं आ गयी ! थोड़े समय के लिए ही सही  मन में खुशियाँ छा गयी ! जानते हो तुमसे मिलने को  क्या कुछ नहीं किया मैंने ! और तो और छोटों से किया वादा ही तोड़ दिया मैंंने ! पर ये क्या ! ऐसे क्यों उदास बैठे हो ! जरा उत्साहित भी नहीं, ज्यों गुस्सा होकर ऐंठे हो ! अब तुमसे क्या बताना या छुपाना  तुम भी तो जानते हो न, मोबाइल, कम्प्यूटर ठीक नहीं सेहत के लिए ये तुम भी तो मानते हो न !!! परन्तु तुम तक आने का माध्यम सिर्फ इंटरनेट है... उसी से हो तुम,और तुम्हारा सबकुछ कम्प्यूटर में सैट है । हम भी नहीं मिलेंगे तुमसे जब ये वादा करते हैं तभी अपने छोटों को  कम्प्यूटर वगैरह से दूर रखते हैं। रेडिएशन के नुकसान अगर  उनसे कह देते हैं "आप क्यों" कहकर वे तो हमें ही चुप कर देते हैं। हाँ दुख होता है कि अपना तो जमाना ही नहीं आया छोटे थे तो बड़ों से डरे, अब बड़े हैं तो छोटों ने हमें डराया !!! खैर ! उनकी सलामती के लिए डर कर ही रह लेते हैं हम अपने छोटों के खातिर मेरे ब्लॉग ! तुमसे दूरियाँ सह लेते हैं.....

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