ब्लॉग से मुलाकात..बहुत दिनों बाद
मेरे ब्लॉग ! देखो मैं आ गयी !
थोड़े समय के लिए ही सही
मन में खुशियाँ छा गयी !
जानते हो तुमसे मिलने को
क्या कुछ नहीं किया मैंने !
और तो और छोटों से किया
वादा ही तोड़ दिया मैंंने !
पर ये क्या ! ऐसे क्यों उदास बैठे हो !
जरा उत्साहित भी नहीं,
ज्यों गुस्सा होकर ऐंठे हो !
ज्यों गुस्सा होकर ऐंठे हो !
अब तुमसे क्या बताना या छुपाना
तुम भी तो जानते हो न,
मोबाइल, कम्प्यूटर ठीक नहीं
सेहत के लिए
ये तुम भी तो मानते हो न !!!
परन्तु तुम तक आने का माध्यम
परन्तु तुम तक आने का माध्यम
सिर्फ इंटरनेट है...
उसी से हो तुम,और तुम्हारा सबकुछ
कम्प्यूटर में सैट है ।
हम भी नहीं मिलेंगे तुमसे
जब ये वादा करते हैं
तभी अपने छोटों को
कम्प्यूटर वगैरह से दूर रखते हैं।
रेडिएशन के नुकसान अगर
उनसे कह देते हैं
"आप क्यों" कहकर वे तो
हमें ही चुप कर देते हैं।
हाँ दुख होता है कि अपना तो
जमाना ही नहीं आया
छोटे थे तो बड़ों से डरे,
अब बड़े हैं तो
छोटों ने हमें डराया !!!
खैर ! उनकी सलामती के लिए
डर कर ही रह लेते हैं
हम अपने छोटों के खातिर मेरे ब्लॉग !
तुमसे दूरियाँ सह लेते हैं...
तुमसे दूरियाँ सह लेते हैं...
टिप्पणियाँ
हाँ दुख होता है कि अपना तो
जमाना ही नहीं आया
छोटे थे तो बड़ों से डरे,
अब बड़े हैं तो
छोटों ने हमें डराया !!!
सच में यही कड़वा सच है हमारी पीढी का। आप के लेखन की निरंतरता की कामना करती हूँ। सस्नेह। 🙏🌹🌹🌹🌹🌹
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-12-2019) को "आस मन पलती रही "(चर्चा अंक-3551) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
रचना पर प्रतिक्रिया से विमर्श करने हेतु आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
आपका तहेदिल से धन्यवाद
अच्छा आपके साथ भी ये सिलसिला चल रहा है फिर तो हम दुख के भी साथी हैं...हैं न...😩😅😅
बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
सस्नेह आभार ।
सादर आभार...
सस्नेह आभार...
सादर आभार...
बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
सादर आभार।
उनसे कह देते हैं
"आप क्यों" कहकर वे तो
हमें ही चुप कर देते हैं
सही कहा आपने... होता तो यही है । मगर ब्लॉग की नाराजगी भी सही है । बहुत दिनों के बाद पढ़ने को मिला आपका लिखा हुआ बहुत अच्छा लगा ।
कहा आपने
पर फिर कृपया निरंतरता बनाने का प्रयास करिये न।
बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने।
हाँ दुख होता है कि अपना तो
जमाना ही नहीं आया
छोटे थे तो बड़ों से डरे,
अब बड़े हैं तो
छोटों ने हमें डराया
बिलकुल सही कहा आपने सुधा जी ,उनकी सलामती के लिए ही उनसे डर कर भी रहना पड़ता हैं ,बहुत ही खूबसूरती से आपने वर्णन किया है ,सुंदर रचना ,सादर नमन
सस्नेह आभार।
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार उत्साहवर्धन हेतु।
सस्नेह आभार...
ब्लॉग की नाराजगी और अपने मन का .... कितना सहज और आकर्षित अंदाज़ में लिखा है ...
सच है की कई बार बच्चों की खातिर ये सब करना होता है ... और करना भी चाहिए, जरूरी भी है ... समाज में समाज की सचाइयों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता ... पर कहीं मन में एक बच्चा भी होना चाहिए ... कभी कभी उसकी खातिर, कभी यूँ ही ... नज़र बचा कर ब्लॉग पर आ जाना भी चाहिए ... चाहे शैतान मन के बच्च्चे की खातिर ...
बहुत लाजवाब और सुन्दर अभिव्यक्ति है ... बहुत खूब ...
कभी कभी आने जाने में कोई बुराई नहीं है ...
पढने और लिखने में ही ....
सादर आभार आपका।
सादर आभार...
बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार
सस्नेह...
सादर
बहुत दिनो बाद आपका शुभागमन हुआ आपके आशीर्वचन पाकर कृतकृत्य हूँ।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
हे मेरे ब्लॉग ! तू पाठक रूपी ग्राहकों से सूनी दुकान है. फिर भी मेरे भावों की उड़ान है ! तू जीवन की मुस्कान है !
हृदयतल से धन्यवाद आपका
सादर आभार।
सस्नेह आभार...।
हम तो सदा इंतजार में रहते हैं आपके, आपने ही अपने को वादों में उलझा लिया , पर आज खिंची आई तो हम भी खुश हुवे ।आते रहिए रुक रुक के ही सही ।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
टिप्पणी करने तक यात्रा करते-करते लगा कि–"अरे! यह तो बहुत लोगों की कहानी है।"
हृदयतल से धन्ययवाद आपका
सादर आभार...