अहा ! कितने व्यूअर् होंगे !
अपनी चादर में पैर रुकते नहीं जमाने के
ऐसे फैला कि हक उसी का है ।
चुप है दूजा कि छोड़ रहने दो, कलह न हो
वो तो निपट कायर ही समझ बैठा है।
शान्ति से शान्ति की वार्ता अगर चाहे कोई
गीदड़ भभकी से भय बनाके ऐसे ऐंठा है।
शेर कब तक सहे गीदड़ की ये ललकार आखिर
एक गर्जन से ही लाचार छुपा दुबका है।
करें तो क्या करें बिल में छुपे इन जयचन्दों का
कहीं अर्जुन भी वही प्रण लिए ऐंठा हैं।
तमाशा देखने को हैं कितने आतुर देखो !
मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।
मदद की गुहारें भी हवा में दफन होती हैं यहाँ
इयरफोन में सुनने लायक ही कौन रहता है ।
महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-3-21) को "सीमित है संसार में, पानी का भण्डार" (चर्चा अंक 4014) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
मदद की गुहारें भी हवा में दफन होती हैं यहाँ
वर्तमान के परिक्षेत्र में आपकी रचना सटीक बैठती है
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति,सुधा दी।
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
वाह!!बेहतरीन सृजन सखी।
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
सटीक भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।
सराहनीय ।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
यानी कि घाटे का सौदा !
मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।
वाह! लाज़वाब!!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सर!
सार्थक व्यंग्य ।
आज के समय को पैनी नज़र से देखने और लिखने का बाखूबी प्रयास किया है इस व्यंग में आपने ...
बहुत प्रभावशाली रचना ...
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सस्नेह आभार।
अभी भी कोशिश ही कर रही हूँ।