आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

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  आओ बच्चों ! अबकी बारी  होली अलग मनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें  छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग  सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए  एक और रचना इसी ब्लॉग पर ●  बच्चों के मन से

अधूरी उड़ान


girl tied with ropes(expressing helplessness of a women not being able to fulfill her dreams)

एक थी परी
हौसला और उम्मीदों
के मजबूत पंखों से
उड़ने को बेताब
कर जमाने से बगावत
पढ़कर जीते कई खिताब
विद्यालय भी था सुदूर
पैदल चलती रोज मीलों दूर
अकेले भी निर्भय होकर
वीरान जंगली,ऊबड़-खाबड़
पहाड़ी राहों पर
खूंखार जंगली जानवर भी
जैसे साथी बन गये थे उसके
हर विघ्न और बाधाएं
जैसे हार गयी थी उससे
कदम कदम की सफलता पाकर
पंख उसके मजबूत बन गये
उड़ान की प्रकिया के लिए
पायी डिग्रियां सबूत बन गये
एक अनोखा व्यक्तित्व लिए
आत्मविश्वास से भरपूर
बढ़ रही थी अनवरत आगे
कि मंजिल अब नहीं सुदूर
तभी अचानक कदम उसके
उलझकर जमीं पर लुढ़क गये
सम्भलकर देखा उसने हाय!
आँखों से आँसू छलक गये
आरक्षण रूपी बेड़ियों ने
जकड़ लिए थे बढ़ते कदम
उड़ान भरने को आतुर पंखों ने
फड़फड़ तड़प कर तोड़ा दम।।





               चित्र;साभार गूगल से...

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