अभी भी हाथ छोटे हैं
सिसकती है धरा देखो
गगन आँसू बहाता है
ग्रीष्म पिघली बरफ जैसी
मई भी थरथराता है
रुकी सी जिन्दगानी है
अधूरी हर कहानी है
शवों से पट रही धरती
प्रलय जैसी निशानी है
ये क्या से क्या हुआ जीवन
थमी साँसें बिलखती हैं
दवा तो क्या, दुआ भी ना
रूहें तन्हा तड़पती हैं
नजर किसकी जमाने को
आज इतना सताती है
अद्यतन मास्क में छुपता
तरक्की भी लजाती है
सदी बढ़ते जमाने से
सदी भर पीछे लौटे हैं
समझ विज्ञान को आया
अभी भी हाथ छोटे हैं
चित्र साभार, photopin.com से
टिप्पणियाँ
सदी भर पीछे लौटे हैं
समझ विज्ञान को आया
अभी भी हाथ छोटे हैं
सही कहा आपने 👍 मर्मस्पर्शी सृजन सखी।
सनेहासिक्त प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका ।
आप भी अपना खयाल रखिएगा सखी!
अधूरी हर कहानी है
शवों से पट रही धरती
प्रलय जैसी निशानी है
बहुत सुंदर,वाकई अभी विज्ञानं के हाथ बहुत छोटे हैं।मर्म स्पर्शी रचना।
सदी भर पीछे लौटे हैं
समझ विज्ञान को आया
अभी भी हाथ छोटे हैं
बहुत सुंदर एवं मर्म स्पर्शी रचना, हाँ कुदरत के आगे अभी विज्ञानं के हाथ बहुत छोटे हैं।
बहुत मार्मिक रचना । क्या क्या देखना बाकी है अभी क्या मालूम ।
सत्य है चाहे कड़वा सच पर इसे ही जीना होगा ... इसके साथ अभी तो चलना होगा ...
स्तब्ध है जीवन,
पर हार मत मान
खोज समाधान ।
_/\_
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
तहेदिल से धन्यवाद नुपुरं जी!
बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका।
सदी भर पीछे लौटे हैं
समझ विज्ञान को आया
अभी भी हाथ छोटे हैं
आज के हालात को ब्यान करती कविता...
मार्मिक,सत्य एवं समसामयिक पंक्तियाँ। भावपूर्ण सृजन। सादर प्रणाम 🙏
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय आँचल जी!
आज इतना सताती है
अद्यतन मास्क में छुपता
तरक्की भी लजाती है---बहुत खूब...बहुत अच्छी रचना है।
अभी भी हाथ छोटे हैं
बहुत सुंदर कविता दी, विज्ञान की स्थिति अभी भले ही प्रांशुलभ्ये फले लोभादुद्बाहुरिव वामनः। (रघुवंश म.का. 1/3) जैसी है, परंतु फिर सराहनीय भी है।
सहृदय आभार एवं धन्यवाद आपका।
स्वागत है आपका ब्लॉग पर।
सदी भर पीछे लौटे हैं
समझ विज्ञान को आया
अभी भी हाथ छोटे हैं
नहीं, सुधाजी शायद अभी भी समझ में नहीं आया वरना ये एलोपैथी और आयुर्वेद की लड़ाई, एक देश का दूसरे देश पर हमला, जैविक हथियारों का निर्माण, गंदी राजनीति....ये सब बंद करके सिर्फ मानवता के लिए एकजुट हो जाते सब।
वैसे सामयिक विषयों पर आप बहुत अच्छा लिख रही हैं। देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ।
आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है मेरा...।
सही कहा आपने कि अभी भी समझ नहीं आया तभी तो मैं बड़ा मैं बड़ा कर रहे हैं तो कोई सियासी खेल खेल रहे हैं...वैक्सीन हैं लेकिन लगवाई नहीं ...मरने के लिए छोड़ा है सबको। ऐसा लगता है जैसे इंसानियत ही मर चुकी है..
रचना पर विमर्श हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद आपका।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।