मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

ज्ञान के भण्डार गुरुवर

 ख्याति लब्ध पत्रिका 'अनुभूति' के 'अपनी पाठशाला' विशेषांक में मेरी रचना 'ज्ञान के भण्डार गुरुवर ' प्रकाशित करने हेतु आ.पूर्णिमा वर्मन दीदी का हार्दिक आभार ।


Web page

ज्ञान के भंडार गुरुवर, 

पथ प्रदर्शक है हमारे ।

डगमगाती नाव जीवन,

 खे रहे गुरु के सहारे ।


गुरु की पारस दृष्टि से ही , 

मन ये कुंदन सा निखरता ।

कोरा कागज सा ये जीवन, 

गुरु की गुरुता से महकता ।

देवसम गुरुदेव को हम, 

दण्डवत कर, पग-पखारें  ।

ज्ञान के भंडार गुरुवर, 

पथ प्रदर्शक है हमारे ।


गुरु कृपा से ही तो हमने ,

नव ग्रहों का सार जाना ।

भू के अंतस को भी समझा, 

व्योम का विस्तार जाना ।

अनगिनत महिमा गुरु की, 

पा कृपा, जीवन सँवारें ।

ज्ञान के भंडार गुरुवर, 

पथ प्रदर्शक है हमारे ।


तन में मन और मन से तन, 

के गूढ़ को बस गुरु ही जाने ।

बुद्धि के बल मन को साधें, 

चित्त चेतन के सयाने ।

अथक श्रम से रोपते ,

अध्यात्म शिष्योद्यान सारे।

ज्ञान के भंडार गुरुवर, 

पथ प्रदर्शक है हमारे ।


पढ़िए पत्रिका 'अनुभूति' में प्रकाशित मेरी एक और रचना

● बने पकौड़े गरम-गरम




टिप्पणियाँ

  1. वाह्ह... बहुत सुंदर,गुरूजनों के सम्मान में लिखी आपकी रचना मात्र शब्द नहीं हैं वर्तमान समय में छात्रों के लिए सकारात्मक संदेश है।
    बहुत बधाई दी पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं के लिए। ऐसे ही सुंदर लिखिए और हमें प्रेरित करते रहिए।
    सस्नेह. प्रणाम दी।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय श्वेता ! सृजन को सार्थकता प्रदान करती टिप्पणी के साथ रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।

      हटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह सुधा जी...क्या खूब ल‍िखा ..अद्भुत

    जवाब देंहटाएं
  4. गुरु जनों के प्रति समर्पित भाव ... कमाल की रचना और बहुत बधाई इस प्रकाशन की ...

    जवाब देंहटाएं
  5. गुरुजनों के सम्मान में हृदय तल को स्पर्श करते श्रद्धापूरित भाव लिए मनविभोर करती लाजवाब रचना सुधा जी ! अनुभूति पत्रिका में सृजन प्रकाशित होने पर आपको हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं

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