मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

तपे दुपहरी ज्वाल

 

Summer


【1】

भीषण गर्मी से हुआ, जन-जीवन बेहाल ।

लू की लपटें चल रही, तपे दुपहरी ज्वाल ।

तपे दुपहरी ज्वाल, सभी बारिश को तरसें ।

बीत रहा आषाढ़, बूँद ना बादल बरसे ।

कहे सुधा सुन मीत, बने सब मानव धर्मी ।

आओ रोपें वृक्ष , मिटेगी भीषण गर्मी ।।


【2】

रातें काटे ना कटे,  अलसायी है भोर ।

आग उगलती दोपहर, त्राहि-त्राहि चहुँ ओर ।

त्राहि-त्राहि चहुँ ओर, वक्त ये कैसा आया ।

प्रकृति से खिलवाड़, नतीजा ऐसा पाया ।

कहे सुधा कर जोरि, वनों को अब ना काटें ।

पर्यावरण सुधार , सुखद बीते दिन-रातें ।।



गर्मी पर मेरी एक और रचना पढ़िए इसी ब्लॉग पर-

● उफ्फ ! "गर्मी आ गई"




 

टिप्पणियाँ

  1. वाह! सुधा जी ,बहुत खूबसूरत सृजन।

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  2. सखी दुनिया भर भर पी रही अपना शहर भी तपता और प्यासा है! प्रभावी रचना के लिए बधाई प्रिय सुधा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा आपने दुनिया भर भर पी रही...पता नहीं यहाँ क्यों सूखा पड़ा हैं ।
      तहेदिल से धन्यवाद आपका ।

      हटाएं

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