रिमझिम रिमझिम बरखा आई

चित्र
         चौपाई छंद रिमझिम रिमझिम बरखा आई । धरती पर हरियाली छायी ।। आतप से अब राहत पायी । पुलकित हो धरती मुस्काई ।। खेतों में फसलें लहराती । पावस सबके मन को भाती ।। भक्ति भाव में सब नर नारी । पूजें शिव शंकर त्रिपुरारी ।। सावन में शिव वंदन करते । भोले कष्ट सभी के हरते ।। बिल्वपत्र घृत दूध चढ़ाते । दान भक्ति से पुण्य कमाते ।। काँवड़ ले काँवड़िये जाते । गंंगाजल सावन में लाते ।। बम बम भोले का जयकारा । अंतस में करता उजियारा ।। नारी सज धज तीज मनाती । कजरी लोकगीत हैं गाती ।। धरती ओढ़े चूनर धानी । सावन रिमझिम बरसे पानी ।। हार्दिक अभिनंदन आपका🙏🙏 पढिए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर ● पावस में इस बार

तपे दुपहरी ज्वाल

 

Summer


【1】

भीषण गर्मी से हुआ, जन-जीवन बेहाल ।

लू की लपटें चल रही, तपे दुपहरी ज्वाल ।

तपे दुपहरी ज्वाल, सभी बारिश को तरसें ।

बीत रहा आषाढ़, बूँद ना बादल बरसे ।

कहे सुधा सुन मीत, बने सब मानव धर्मी ।

आओ रोपें वृक्ष , मिटेगी भीषण गर्मी ।।


【2】

रातें काटे ना कटे,  अलसायी है भोर ।

आग उगलती दोपहर, त्राहि-त्राहि चहुँ ओर ।

त्राहि-त्राहि चहुँ ओर, वक्त ये कैसा आया ।

प्रकृति से खिलवाड़, नतीजा ऐसा पाया ।

कहे सुधा कर जोरि, वनों को अब ना काटें ।

पर्यावरण सुधार , सुखद बीते दिन-रातें ।।



गर्मी पर मेरी एक और रचना पढ़िए इसी ब्लॉग पर-

● उफ्फ ! "गर्मी आ गई"




 

टिप्पणियाँ

  1. वाह! सुधा जी ,बहुत खूबसूरत सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  2. सखी दुनिया भर भर पी रही अपना शहर भी तपता और प्यासा है! प्रभावी रचना के लिए बधाई प्रिय सुधा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा आपने दुनिया भर भर पी रही...पता नहीं यहाँ क्यों सूखा पड़ा हैं ।
      तहेदिल से धन्यवाद आपका ।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं