बी पॉजिटिव

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  "ओह ! कम ऑन मम्मा ! अब आप फिर से मत कहना अपना वही 'बी पॉजिटिव' ! कुछ भी पॉजिटिव नहीं होता हमारे पॉजिटिव सोचने से ! ऐसे टॉक्सिक लोगों के साथ इतने नैगेटिव एनवायरनमेंट में कैसे पॉजिटिव रहें ?   कैसे पॉजिटिव सोचें जब आस-पास इतनी नेगेटिविटी हो ?.. मम्मा ! कैसे और कब तक पॉजिटिव रह सकते हैं ? और कोशिश कर भी ली न तो भी कुछ भी पॉजिटिव नहीं होने वाला !  बस भ्रम में रहो ! क्या ही फायदा ? अंकुर झुंझलाहट और  बैचेनी के साथ आँगन में इधर से उधर चक्कर काटते हुए बोल रहा था ।  वहीं आँगन में रखी स्प्रै बोतल को उठाकर माँ गमले में लगे स्नेक प्लांट की पत्तियों पर जमी धूल पर पानी का छिड़काव करते हुए बोली, "ये देख कितनी सारी धूल जम जाती है न इन पौधों पर । बेचारे इस धूल से तब तक तो धूमिल ही रहते है जब तक धूल झड़ ना जाय" ।   माँ की बातें सुनकर अंकुर और झुंझला गया और मन ही मन सोचने लगा कि देखो न माँ भी मेरी परेशानी पर गौर ना करके प्लांट की बातें कर रही हैं ।   फिर भी माँ का मन रखने के लिए अनमने से उनके पास जाकर देखने लगा , मधुर स्मित लिए माँ ने बड़े प्यार से कहा "ये देख ...

ये माँ भी न !...

Rupee in palm


 ट्रेन में बैठते ही प्रदीप ने अपनी बंद मुट्ठी खोलकर देखी तो आँखों में नमी और होठों में मुस्कुराहट खिल उठी ।  साथ बैठे दोस्त राजीव ने उसे देखा तो आश्चर्यचकित होकर पूछा, "क्या हुआ ? तू हँस रहा है या रो रहा है " ? 

अपनी बंद मुट्ठी को धीरे से खोलकर दो सौ का नोट दिखाते हुए प्रदीप बोला , "ये माँ भी न ! जानती है कि पिचहत्तर हजार तनख्वाह है मेरी । फिर भी ये देख ! ये दो सौ रुपये का नोट मेरी मुट्ठी में बंद करते हुए बोली , रास्ते में कुछ खा लेना" ।  कहते हुए उसका गला भर आया । 


टिप्पणियाँ

  1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी मेरी रचना पाँच लिंकों के आनंद मंच के लिए चयन करने हेतु ।

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  2. माँ होकर जाना माँ क्या होती है

    अद्धभुत अनुभूति का सुन्दर वर्णन

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (११-०५-२०२३) को 'माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए'(अंक- ४६६२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए ।

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  4. वाह सखी अंतर्मन को छू गई आपकी रचना, हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपको

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  5. मेरी माँ तो रूपये-पैसे देने के बजाय पूड़ी-सब्ज़ी देते हुए कहती थीं - रास्ते में उल्टा-सीधा ख़रीद कर मत खाइयो.

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  6. ये माँ भी न ...... बहुत भावपूर्ण लघुकथा ।

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  7. चंद लाइनों में कितनी भावनाएं समेट दी है आपने, दिल को छू गई❣️

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  8. माँ तो माँ होती है .....।बहुत खूब सुधा जी ।

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  9. ममता के भाओं से ओतप्रोत रचना

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  10. माँ के वात्सल्य के आगे पद,प्रतिष्ठा धन सब छोटे पड़ जाते हैं.

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  11. माएँ ऐसी ही होती हैं, प्यारी लघुकथा

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  12. मां के इस प्यार का कोई मोल नहीं

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