और एक साल बीत गया

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प्रदत्त पंक्ति ' और एक साल बीत गया' पर मेरा एक प्रयास  और एक साल बीत गया  दिन मास पल छिन  श्वास तनिक रीत गया  हाँ ! और एक साल बीत गया ! ओस की सी बूँद जैसी उम्र भी टपक पड़ी  अंत से अजान ऐसी बेल ज्यों लटक खड़ी  मन प्रसून पर फिर से आस भ्रमर रीझ गया  और एक साल बीत गया ! साल भर चैन नहीं पाने की होड़ लगी  और, और, और अधिक संचय की दौड़ लगी  भान नहीं पोटली से प्राण तनिक छीज गया और एक साल बीत गया ! जो है सहेज उसे चैन की इक श्वास तो ले जीवन उद्देश्य जान सुख की कुछ आस तो ले    मन जो संतुष्ट किया वो ही जग जीत गया  और एक साल बीत गया ! नववर्ष के अग्रिम शुभकामनाओं के साथ पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर -- ●  नववर्ष मंगलमय हो

सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे

 

stair night

मौसम बदलने लगा धीरे-धीरे

जगा आँख मलने लगा धीरे-धीरे ।


जमाना जो आगे बहुत दूर निकला

रुका , साथ चलने लगा धीरे - धीरे।


हुआ चाँद रोशन खिली सी निशा है

कि बादल जो छँटने लगा धीरे-धीरे ।


खुशी मंजिलों की मनायें या मानें

सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे।


अवचेतन में आशा का दीपक जला तो

 मुकद्दर बदलने लगा धीरे-धीरे ।


हवा मन - मुआफिक सी बहने लगी है

मन में विश्वास ऐसा जगा धीरे -धीरे ।


अनावृत हुआ सच भले देर से ही

लगा टूटने अब भरम धीरे-धीरे ।



पढ़िए एक और रचना इसी ब्लॉग पर

 जिसमें अपना भला है, बस वो होना है




टिप्पणियाँ

  1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.सर ! मेरी रचना को पाँच लिंकों के आनंद मंच पर चयन करने हेतु ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (27-04-2023) को   "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659)  पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद आ.शास्त्री जी ! मेरी रचना को चयन करने के लिए ।
      सादर आभार ।

      हटाएं
  3. अवचेतन में आशा का दीपक जला तो
    मुकद्दर बदलने लगा धीरे-धीरे ।
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति सुधा जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. कभी-कभी कोई बात जो मन में घुमड़ रही होती है,वही अचानक सामने आ जाती है. पढ़ कर ऐसा लगा. बादल छंट गया धीरे-धीरे. अभिनन्दन !

    जवाब देंहटाएं
  5. खुशी मंजिलों की मनायें या मानें
    सफर ख्वाहिशों का थमा धीरे -धीरे।

    एक बार पढ़ा, फिर पढ़ा
    और फिर पढ़ा धीरे धीरे

    बहुत सुंदर रचना!!

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह्ह दी लाज़वाब गज़ल लिखी है आपने।
    हर शेर मुकम्मल और बेहतरीन है।
    सस्नेह प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता !

      हटाएं
  7. गंगा-जमुनी तहज़ीब की नुमाइंदगी करने वाली ज़ुबान में ग़ज़ल पढ़ते वक़्त पहले तो दिलो-दिमाग में खटकती है फिर मन को ये भाने लगती है - धीरे-धीरे है !

    जवाब देंहटाएं
  8. अनावृत हुआ सच भले देर से ही

    लगा टूटने अब भरम धीरे-धीरे ।
    बहुत सुन्दर रचना यह सच है कि यदि भरम टूट जाए तभी सत्य से परिचय हो सकता है।साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह! सुन्दर भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  10. सुरा - सा सुधा रस,
    जो मन में है छलका।
    बहकने लगी है,
    गजल धीरे - धीरे।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !

      हटाएं
    2. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी !

      हटाएं
  11. उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय मनीषा !

      हटाएं
  12. सपनों का सफर शुरू हुआ है धीरे- धीरे
    सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत खूबसूरत सृजन।
    लफ्ज़ दर लफ्ज़ पढ़ते गए
    असर हुआ हम पर धीरे धीरे ।

    जवाब देंहटाएं
  14. एक बार पढ़ा, फिर पढ़ा
    और फिर पढ़ा धीरे धीरे.......बहुत सुंदर रचना!!

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत ही सुंदर गजल, सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत ही सुंदर गजल, सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !

      हटाएं

  17. हवा मन - मुआफिक सी बहने लगी है
    मन में विश्वास ऐसा जगा धीरे -धीरे ।

    ये विश्वास बढ़ता रहें धीरे धीरे।
    बहुत खूबसूरत गज़ल।

    जवाब देंहटाएं
  18. विश्वास जगा धीमे धीमे मेरा। बहुत बहुत धन्यवाद। इस ब्लॉग को hom स्क्रीन पर रख रहा हूं। बहुत उत्साह वर्धक हैं।

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत बहुत मधुर और सराहनीय रचना

    जवाब देंहटाएं

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