फर्क
ट्रिंग-ट्रिंग....(डोरबेल की आवाज सुनते ही माधव दरवाजे पर आता है)
माधव (बाहर खड़े व्यक्ति से) - जी ?
व्यक्ति-- "मैं बैंक से....आपने लोन अप्लाई किया है" ?
माधव--"जी , जी सर जी! आइए प्लीज"! ( उन्हें आदर सहित अन्दर लाकर सोफे की तरफ इशारा करते हुए ) "बैठिये सर जी!प्लीज बैठिये ...आराम से" ....
"श्रीमती जी!... देखिये सर जी आये हैं, जल्दी से चाय-नाश्ते की व्यवस्था करो ! पहले पानी, ठण्डा वगैरह लाओ!"
बैंक कर्मचारी- नहीं नहीं इसकी जरूरत नहीं ,आप लोग कष्ट न करें ,धन्यवाद आपका।
माधव- अरे सर जी! कैसी बातें करते हैं , कष्ट कैसा ? ये तो हम भारतीयों के संस्कार हैं, अतिथि देवो भवः...है न...(बनावटी हँसी के साथ)।
(फटाफट मेज कोल्ड ड्रिंक, चाय और नाश्ते से सज जाती है)
तभी डोरबेल बजती है ट्रिंग-ट्रिंग....
माधव (दरवाजे पे) -- क्या है बे?
कूड़ेवाला- सर जी! बहुत प्यास लगी है थोड़ा पानी .......
माधव- घर से पानी लेकर निकला करो ! अपना गिलास-विलास कुछ है?
कूड़ेवाला- नहीं सर जी!गिलास तो नहीं...
माधव (अन्दर आते हुए)- "श्रीमती जी! इसे डिस्पोजल गिलास में पानी दे दो...खुद ही उसे फेंक देगा ...दूर से देना...
और हाँ इसने डोरबेल को छुआ उसे सैनीटाइजर से साफ कर दो और उसे साफ-साफ कह दो ऐसे समय में कोई पानी-वानी नहीं मिलेगा अपना पानी लेकर आया करे"!
"इन्हीं दो टके के लोगों की वजह से देश में कोरोना बढ़ता ही जा रहा है.....आ जाते हैं मुँह उठाकर"
( वह बड़बड़ाते हुए अन्दर आता है)
और फिर बड़े आदर भाव से..
"अरे सर जी!आपने कुछ लिया क्यों नहीं"... (नाश्ते की ट्रे बैंक कर्मचारी की ओर बढ़ाते हुए )
तभी उनकी आठ वर्षीय बेटी सैनीटाइजर की बोतल लेकर बैंक कर्मचारी के पास आती है, और प्रश्न भरे नेत्रों से टुकर-टुकर ताकती है कभी बैंक कर्मचारी को तो कभी बाहर खड़े कूड़ेवाले को....।
चित्र, साभार गूगल से....
टिप्पणियाँ
हमारी यही मानसिकता है सदा से सहूलियत से हम अपने मापदंड और नियम तय करते हैं।
बच्चे इस फर्क को नहीं समझते न उनका बालमन हमसे ही ये संस्कार सीखता है।
विचारणीय लघुकथा सुधा जी।
अनोखी मानसिकता..
सादर..
अनोखी मानसिकता..
सादर..
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१२-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-२९ 'प्रश्न '(चर्चा अंक ३७६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सामयिक सुंदर लेखम
बेहतरीन कथा
सुधा जी मैंने आपके ब्लॉग को फॉलो किया है परन्तु आपकी रचना मेरे रीडिंग लिस्ट में नहीं आती,ऐसा क्यों ?
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सखी आपके दो ब्लॉग में से मैंने एक ही को फॉलो किया था शायद इस वजह से...
अब मैं आपके दोनों ब्लॉग फॉलो कर चुकी शायद अब हम सही से जुड़ चुके होंगे।
जाने किस मानसिकता के हो गए हैं हम ... मासूम बच्चे भी समझ नहीं पाते इसको ...
एक तमाचा है ऐसी दोहरी मानसिकता वालों पर ... और देखिए ये बीमारी कोई फ़र्क़ नहीं कर रही ...
ज़बरदस्त कहानी है ...