आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

चित्र
  आओ बच्चों ! अबकी बारी  होली अलग मनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें  छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग  सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए  एक और रचना इसी ब्लॉग पर ●  बच्चों के मन से

तब सोई थी जनता, स्वीकार गुलामी थी.......



Gandhiji with charkha



सोई थी जनता स्वीकार गुलामी थी
रो-रो कर सहती प्रताड़ना को
नियति मानती थी
जैसे कीलों के आसन पर ,
कोई कुत्ता पल पल रोता
जब चुभती कीलें उठ जाता
फिर थककर सोता
फिर बैठ वहीं, दुखकर
बस थोड़ा उठ जाता
पर कभी ना कोशिश करता
आसन से बाहर आने की ,
अपने भारत की भी कुछ,ऐसे ही कहानी थी
तब सोई थी जनता, स्वीकार गुलामी थी

गर रोष में आकर कोई 
आवाज उठा देता
दुश्मन से फिर अपना
सर्वस्व लुटा देता
इस डर से चुप सहना ही सबने ठानी थी
तब सोई थी जनता स्वीकार गुलामी थी।

बड़ी कोशिश से बापू ने
सोयों को जगाया था
आजादी का सपना 
फिर सबको दिखाया था
अंग्रेज चले जायेंं ,
फिर देश सम्भालेंगे
घर के लफड़े जो हैं ,
हम मिलकर निबटा लेंगे
मन में भावना ऐसी, बापू ने ठानी थी
जब सोयी थी जनता, स्वीकार गुलामी थी ।

दुश्मन तो हार गया !
अपनो ने हरा डाला
आजाद किया जिस देश को
टुकड़े में बदल डाला
विरोधी तत्वों की मिली भगत पुरानी थी
तब सोयी थी जनता स्वीकार गुलामी थी

भला किया जिनका
अपमान मिला उनसे
सीधे सच्चे बापू
धोखे मिले अपनो से
अब भी ना जाने क्या जनता ने ठानी थी
तब सोयी थी जनता स्वीकार गुलामी थी ।

काफी था बापू जो
कर चुके थे तब तक तो
सरकार ने सत्ता में सियासत जो निभानी थी
तब सोई थी जनता स्वीकार गुलामी थी

जो होना था सो हो गया,
बापू के हिस्से दोष गया
आजादी के बदले में बदनामी
अहिंसा के बदले में, हत्या
बचा-खुचा जो मान है जनता आज  मिटाती है
जन्म-दिवस पर उनकी जयन्ती ऐसे मनाती है  ?

आलोचक उनकी करनी में
पानी फेरे जाते हैं
जो खुद कुछ कर न सके
बापू को मिटाते हैं 
इतिहास बन गये जो ,उन्हें इतिहास ही रहने दो।
परकर्म बयां करते ,  निज कर्म तो मत भूलो।
ये आज तुम्हारा है,   तुम ही कुछ आज करो

इतिहास हो गये बापू,  उन्हें इतिहास ही रहने दो !!



टिप्पणियाँ

  1. ये आज तुम्हारा है , तुम ही आज कुछ करो
    इतिहास हो गये बापू , उन्हें इतिहास ही रहने दो ।

    जवाब देंहटाएं
  2. जो होना था सो हो गया,
    बापू के हिस्से दोष गया
    आजादी के बदले में बदनामी
    अहिंसा के बदले में, हत्या
    बचा-खुचा जो मान है जनता आज मिटाती है
    जन्म-दिवस पर उनकी जयन्ती ऐसे मनाती है ? सटीक प्रश्न उठाती आपकी ये रचना आज के लोगो को सोचने पर मजबूर करेगी । सार्थक सृजन के लिए बहुत शुभकामनाएं सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

तन में मन है या मन में तन ?

मन की उलझनें