भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी । बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है...
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द परआप भी आइएगा....धन्यवाद!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी ! पाँच लिंको के आनंद में मेरी रचना चयन करने हेतु ।
हटाएंअभी तो सर्दी ही चल रही । सर्दी में गर्मी का मज़ा । यूँ बीच में बसंत खड़ा है ।
जवाब देंहटाएंसखी सर्दी जब थी यहाँ आई,
जवाब देंहटाएंतब भी तुम कहाँ खुश थे भाई !
सही कहा गर्मी ने। हल्की फुल्की सी प्यारी रचना,🙏
सहज सरल अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमानव मन को जो हो वो न भाए ।