बी पॉजिटिव

"ओह ! कम ऑन मम्मा ! अब आप फिर से मत कहना अपना वही 'बी पॉजिटिव' ! कुछ भी पॉजिटिव नहीं होता हमारे पॉजिटिव सोचने से ! ऐसे टॉक्सिक लोगों के साथ इतने नैगेटिव एनवायरनमेंट में कैसे पॉजिटिव रहें ? कैसे पॉजिटिव सोचें जब आस-पास इतनी नेगेटिविटी हो ?.. मम्मा ! कैसे और कब तक पॉजिटिव रह सकते हैं ? और कोशिश कर भी ली न तो भी कुछ भी पॉजिटिव नहीं होने वाला ! बस भ्रम में रहो ! क्या ही फायदा ? अंकुर झुंझलाहट और बैचेनी के साथ आँगन में इधर से उधर चक्कर काटते हुए बोल रहा था । वहीं आँगन में रखी स्प्रे बोतल को उठाकर माँ गमले में लगे स्नेक प्लांट की पत्तियों पर जमी धूल पर पानी का छिड़काव करते हुए बोली, "ये देख कितनी सारी धूल जम जाती है न इन पौधों पर । बेचारे इस धूल से तब तक तो धूमिल ही रहते है जब तक धूल झड़ ना जाय" । माँ की बातें सुनकर अंकुर और झुंझला गया और मन ही मन सोचने लगा कि देखो न माँ भी मेरी परेशानी पर गौर ना करके प्लांट की बातें कर रही हैं । फिर भी माँ का मन रखने के लिए अनमने से उनके पास जाकर देखने लगा , मधुर स्मित लिए माँ ने बड़े प्यार से कहा "ये देख ...
आपकी लिखी रचना सोमवार 27 जून 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ. संगीता जी मेरी इतनी पुरानी भूली बिसरी रचना चयन कर पाँच लिंको के आनंद मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंलौट आओ वहींं से जहाँँ हो,
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहह..
आभार..
सादर..
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी !
हटाएंलौट आये कहीं तुम्हारे लिए
जवाब देंहटाएंजीवन की दोपहर में
धूप की आपाधापी में
जो खो गया
साँझ होने के पहले
गर मिल जाए
रात का मायना बदल जाए।
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सुंदर अभिव्यक्ति सुधा जी।
सस्नेह।
जी, श्वेता जी, क्या खूब कहा आपने ! साँझ होने के पहले
हटाएंगर मिल जाए
रात का मायना बदल जाए।
बहुत सही...तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
खाई भी गहरी सी है,
जवाब देंहटाएंचलो पाट डालो उसे ।
सांझ ढलने से पहले,
बगिया बना लो उसे ।
नन्हींं नयी पौध से फिर,
महक जायेगा घर-बार ।
लौट आयें बचपन की यादें,
लौट आये फिर कहीं प्यार ?
एक समृद्ध परिवार संस्था जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। नव चेतना भरती सुंदर सराहनीय रचना । बधाई सुधा जी ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंढले साँझ समझे अगर
जवाब देंहटाएंबस सिर्फ पछताओगे
बस में न होगा समय
फिर क्या तुम कर पाओगे
एक पल ठहर कर यही तो नहीं सोचते और अपने ही हाथों तोड़ देते खुशियों का घरौंदा, बेहद मार्मिक सृजन सुधा जी 🙏
जी, कामिनी जी सही कहा आपने...
हटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।