दोहे - सावन में शिव भक्ति

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              ■  सावन आया सावन मास है , मंदिर लगी कतार । भक्त डूबते भक्ति में, गूँज रही जयकार ।। लिंग रूप भगवान का, पूजन करते भक्त । कर दर्शन शिवलिंग के,  हुआ हृदय अनुरक्त । ओघड़दानी देव शिव, बाबा भोलेनाथ । जपें नाम सब आपका, जोड़े दोनों हाथ ।। करो कृपा मुझ दीन पर, हे शिव गौरीनाथ । हर लो दुख संताप प्रभु, सर पर रख दो हाथ ।। बम बम भोले बोलकर, भक्त करें जयकार । विधिवत व्रत पूजन करें, मिलती खुशी अपार ।।                      ■   काँवड काँधे में काँवड सजे, होंठों मे शिव नाम । शिव शंकर की भक्ति से, बनते बिगड़े काम ।। काँवड़िया काँवड़ लिये, चलते नंगे पाँव । बम बम के जयघोष से,  गूँज रहे हैं गाँव ।। काँधे पर काँवड़ लिये, भक्त चले हरिद्वार । काँवड़ गंगाजल भरे, चले शंभु के द्वार  ।। काँवड़िया काँवड़ लिए , गाते शिव के गीत । जीवन उनका धन्य है, शिव से जिनको प्रीत ।। सादर अभिनंदन🙏🙏 पढ़िये भगवान शिव पर आधारित कुण्डलिया छंद निम्न लिंक पर ●  हरते सबके कष्ट सदाशिव भोले शंकर

बी पॉजिटिव

 

be positive

"ओह ! कम ऑन मम्मा ! अब आप फिर से मत कहना अपना वही 'बी पॉजिटिव' ! कुछ भी पॉजिटिव नहीं होता हमारे पॉजिटिव सोचने से ! ऐसे टॉक्सिक लोगों के साथ इतने नैगेटिव एनवायरनमेंट में कैसे पॉजिटिव रहें ?  

कैसे पॉजिटिव सोचें जब आस-पास इतनी नेगेटिविटी हो ?.. मम्मा ! कैसे और कब तक पॉजिटिव रह सकते हैं ? और कोशिश कर भी ली न तो भी कुछ भी पॉजिटिव नहीं होने वाला !  बस भ्रम में रहो ! क्या ही फायदा ? अंकुर झुंझलाहट और  बैचेनी के साथ आँगन में इधर से उधर चक्कर काटते हुए बोल रहा था । 

वहीं आँगन में रखी स्प्रे बोतल को उठाकर माँ गमले में लगे स्नेक प्लांट की पत्तियों पर जमी धूल पर पानी का छिड़काव करते हुए बोली, "ये देख कितनी सारी धूल जम जाती है न इन पौधों पर । बेचारे इस धूल से तब तक तो धूमिल ही रहते है जब तक धूल झड़ ना जाय" ।

 

माँ की बातें सुनकर अंकुर और झुंझला गया और मन ही मन सोचने लगा कि देखो न माँ भी मेरी परेशानी पर गौर ना करके प्लांट की बातें कर रही हैं ।  

फिर भी माँ का मन रखने के लिए अनमने से उनके पास जाकर देखने लगा , मधुर स्मित लिए माँ ने बड़े प्यार से कहा "ये देख न बेटा ! ये धूल ये नैगेटिविटी इस पौधे पर कैसी चिपकी है न, बिल्कुल तेरे उस नेगेटिव एनवायरनमेंट सी ! और पानी की फुहार संग ये सारी धूल पौधे की पत्तियों से उसी की जड़ों में जा रही है, है न ! तो क्या इस धूल से ये पौधे भी धूल बन जायेंगे"?

अंकुर कुछ समझने की कोशिश ही कर रहा था कि पौधे की पत्तियाँ स्प्रे से नहा धोकर चमक उठी ।

अंकुर की बुझी आँखों में भी चमक लौट आई । वह बोला, "माँ ये धूल तो इस पौधे के लिए जैसे खाद बन गयी ! है न ?

"वही तो बेटा ! अब समझा मेरा बी पॉजिटिव" ? 

"हाँ मम्मा ! अब अच्छे से समझ गया एण्ड आइ विल ऑलवेज थिंक पॉजिटिवली" !



पढ़िए एक और लघुकथा निम्न लिंक पर

● उफ्फ ! ये बच्चे भी न

टिप्पणियाँ


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 अप्रैल को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. व्वाहहहहहह
    सुंदर चिंतन
    वंदन

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  3. वाह ! माँ ऐसी ही होती है जो हर निराशा को आशा में बदल दे

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  4. सकारात्मक भाव .., कितना सहज संदेश!! मन को छू गई प्रेरणादायक लघुकथा ।

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  5. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी लघु कथा

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