जो घर देखा नहीं सो अच्छा
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एक चिड़िया ने अपने बच्चों को शहर के पॉश इलाकों में घुमाने का प्रोग्राम बनाया । जो उनके नीड़ से काफी दूर था । चिड़िया और उसके नन्हें बच्चे वहाँ जाने के लिए बहुत उत्साहित थे ।
अगले दिन बड़े तड़के सुबह ही उन्होंने उड़ान भर दी । थोड़ी देर में वे सुन्दर आलीशान भवनों और ऊँची -ऊँची इमारतों को देखकर बहुत ही खुश और आश्चर्यचकित थे, और चूँ-चूँ कर अपनी ही भाषा में अपनी माँ से उत्सुकतावश तरह तरह के सवाल कर रहे थे , माँ चिड़िया भी अपने बच्चों को बड़े लाड़ से उनके सवालों के जबाब में ही जीवन के गुर भी सिखाये जा रही थी ।
वहाँ के बाग बगीचे साफ-सुथरे और फूलों से लदे थे , जिन पर तरह तरह की रंग-बिरंगी तितलियों को मंडराते देखकर नन्हीं चिड़ियों की खुशी का तो ज्यों ठिकाना ही न था । और माँ चिड़िया अपने बच्चों (नन्हीं चिड़ियों) की खुशी से अत्यंत खुश थी ।
वे हर एक चीज को देखते और उसकी तुलना अपने इलाके की चीजों से करते हुए इधर-उधर फुर्- फुर्र उड़े जा रहे थे । यूँ ही बतियाते उड़ते - उड़ते वे सभी एक बहुमंजिली इमारत की छत में बनी पानी की टंकियों में बैठे तो वहाँ बने टेरेस गार्डन को देखते ही रह गये ।
सुंदर हरे-भरे सदाबहार पौधों और सुगंधित रंग-बिरंगे पुष्पों से सजा ये टेरेस गार्डन अपने-आप में अनोखा इसलिए भी था, क्योंकि इसमें कुछ सुनहरे पिंजड़े लटक रहे थे, जिनमें सुन्दर-सुन्दर पंछी बंद थे, जो बहुत ही सुरीली चहचहाहट के साथ कोई मधुर सुरमई संगीत गुनगुना रहे थे । उनके हर पिंजड़े में खूब सारे स्वादिष्ट एवं विशिष्ट खाद्यान्न यूँ ही पड़े थे ।
चिड़िया और उसके बच्चे उन पंछियों के भाग्य पर बलिहारी जा रहे थे । वे उन सुनहरे पिंजड़ों की तुलना अपने टूटे फूटे सूखे नीड़ से करने लगे, साथ ही ऐसे-ऐसे खाद्यान्न जिनकी कल्पना तक उन्होंने स्वप्न में भी नहीं की, उन्हें देखकर चिड़िया के बच्चे ललचा गये और अपनी माँ से उन्हें खाने की जिद्द करने लगे ।
कुछ देर बाद उन बंद पंछियों का सुरमई संगीत खत्म हुआ तो वे दुखी मन आकाश की ओर ताकने लगे । तभी चिड़िया ने देखा कि उनमें एक चिड़िया उसकी बचपन की सखी लग रही है , तो वह चूँ-चूँ कर उसके पास जाकर उसके पिजड़े के तारों को पकड़ने की कोशिश में फड़फड़ाने लगी।
पिंजड़े में बंद पक्षी ने भी उसे देखा और नजर मिलते ही उसने भी अपनी सखी को पहचान लिया । भावविभोर होकर दोनों की आँखों से आँसू टपकने लगे। बंद पक्षी अपनी सखी के गले लगने को फड़फड़ाई तो उस सुनहरे पिंजड़े की मजबूत तारों से टकराकर उसके पंख टूटकर बिखरने लगे , वह दर्द से कराह उठी और वापस अपनी जगह बैठकर टुकर-टुकर लाचार सी अपनी सखी को बस देखती रह गई ।
दोनों ने एकदूसरे की कुशलक्षेम पूछी तो बाहर वाली चिडिय़ा ने उसे अपने नन्हें बच्चों से मिलवाया । फिर उस इलाके एवं उस सुंदर टेरेस गार्डन की प्रशंसा के साथ उसकी खुशकिस्मती एवं उसके मालिक की सहृदयता का गुणगान करने लगी, जिसने इतने खूबसूरत पिंजड़े में इतने सारे विशेष खाद्यान्नों के साथ उसे इतनी आरामदायक और खुशहाल जिंदगी दी है ।
उसकी बातें सुन पिंजड़े में बंद चिड़िया अनमने से मुस्कराई और पिंजड़े को हिलाकर कुछ अन्न के दाने नीचे फेंकती हुई उदास होकर बोली , "सखी ! ये कुछ दाने बच्चों को खिलाकर फौरन यहाँ से चली जाओ ! यहाँ के ऐश्वर्य पर मन लगाकर यहाँ रुके तो यहीं फँसकर रह जाओगे। बस इतना समझने की कोशिश करना कि मैं इतनी ही खुशकिस्मत होती और यहाँ के मालिक इतने सहृदय होते तो इस सुनहरे पिंजड़े का दरवाजा बंद ना होता । बस ये समझो कि जो घर देखा नहीं सो अच्छा " !
चिड़िया के बच्चे बड़े लालच में फटाफट स्वादिष्ट खाद्यान्नों को चुग-चुग कर मजे ले ही रहे थे कि तभी किसी की पदचाप की आहट सुन माँ चिड़िया अपने बच्चे को जबर्दस्ती वहाँ से उड़ा ले चली ।
वापस अपने नीड़ में आकर जब चिड़िया के बच्चे वहाँ की बढ़ा-चढ़ाकर तारीफ कर रहे थे , तब माँ चिड़िया की आंखों में अपनी सखी का उदास चेहरा घूम गया । और वह अपने बच्चों को अपने डैने में समेटते हुए बोली, "जो घर देखा नहीं सो अच्छा " ।
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टिप्पणियाँ
बहुत बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद आ.आलोक जी !
हटाएंबहुत दिनों बाद आपकी प्रतिक्रिया पाकर लेखन सार्थक हुआ ।
सादर आभार 🙏🙏
चिड़ियों के माध्यम से बहुमूल्य सीख देती रचना ,सच चकाचौंध की दुनिया हमें बहुत लुभाती है मगर वहां की हकीकत तो वहीं जानते हैं, बहुत ही सुन्दर सृजन सुधा जी 🙏
जवाब देंहटाएंजी, कामिनी जी ! तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
हटाएंसीख देती और रोचक कहानी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. सर !
हटाएंमर्मस्पर्शी शिक्षाप्रद लघुकथा. स्वतंत्रता भौतिक सुख-सुविधाओं से सर्वथा श्रेष्ठतम है.
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ. रविन्द्र जी ! आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ ।
हटाएंकथानक का ताना-बाना बहुत सुन्दरता से बुना है सुधा जी! कथा का उद्देश्य शिक्षाप्रद है जो बहुत प्रभावित करता है ।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार मीनाजी ! आपकी सारगर्भित समीक्षा पाकर सृजन सार्थक हुआ ।
हटाएंभावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार हरीश जी !
हटाएंसुंदर बोध देती कहानी
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.अनीता जी !
हटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार सखी ! मेरी रचना को मंच पर साझा करने हेतु ।
जवाब देंहटाएं"कहीं भली है कटुक निबौरी,
जवाब देंहटाएंकनक कटोरी की मैदा से"
अक्षरशः आपने जीवंत कर दिया दी।
अत्यंत सार्थक संदेश देती बहुत अच्छी कहानी।
सस्नेह प्रणाम दी
सादर।
सस्नेह आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता !
हटाएंआपकी स्नेहासिक्त प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ ।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जोशी जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी लघु कथा
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक प्रेरक रचना प्रिय सुधा जी! जीवन में इस तामझाम और नकली चकाचौंध ने अपना जाल बिछा रखा है जिसमें सरलमना लोग आसानी से फंस जाते हैं! अबोध पंछी भी अपनी उड़ान का आनंद खोकर सोने के पिंजरे में कैद हो अपने भाग्य को कोसते हैं! बड़ी सुंदर कहानी है! चिड़िया और उसके बच्चों के माध्यम से बहुत बड़ा सबक सिखाने का प्रयास सार्थक है! अच्छा लग रहा है आपकी विभिन्न रचनाएँ पढ़कर ❤
जवाब देंहटाएंआपको कहानी अच्छी लगी तो श्रम साध्य हुआ ।सराहनीय प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सखी !
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