मन की उलझनें
बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती । बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था । पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ? लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 27 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंजय श्रीराम बहुत ही सुन्दर सार्थक और मनभावन रचना सखी
जवाब देंहटाएंजय श्री राम
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंनिरखि सुधा सुध भूलि, मनोहर श्यामल सूरत।
जवाब देंहटाएंधन्य हुए योगिराज, बनाई पावन मूरत ।
सचमुच अद्भभुत सृजन किया है मूर्तिकार ने
बहुत ही सुन्दर सृजन सुधा जी 🙏
जय श्री राम 🙏
वाह सुधा जी, एक अद्भुत रचना...वाह..क्या खूब कहा कि -
जवाब देंहटाएंगल भूषण बनमाल, छवि आलोक मनमोहे ।
निरखि सुधा सुध भूलि, मनोहर श्यामल सूरत।
#जयश्रीराम
कमाल के भाव … स्वतः मन में उपज रहे हैं भाव है राम जी की …
जवाब देंहटाएं