उठे वे तो जबरन गिराने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले
कुछ अपने ही रिश्ते मिटाने चले
अपनों की नजर में गिराकर उन्हें
गैरों में अपना बताने चले ।।
ना राजा ना रानी, अधूरी कहानी
दुखों से वे लाचार थे बेजुबानी
करम के भरम में फँसे ऐसे खुद ही
कल्पित ही किस्से सुनाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
दर-दर की ठोकर से मजबूत होकर
चले राह अपनी सभी आस खोकर
हर छाँव सर से उनकी गिराकर
राहों में काँटे बिछाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
काँटों में चल के तमस से निकल के
रस्ते बनाये हर विघ्नों से लड़ के
पहचान खुद से नयी जब बनी तो
मिल बाँट खुशियाँ मनाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
पढ़िए इन्हीं भावों पर आधारित एक और सृजन
"दुखती रगों को दबाते बहुत हैं"
टिप्पणियाँ
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यथार्थ को कहती सुंदर रचना ।
रस्ते बनाये हर विघ्नों से लड़ के
पहचान खुद से नयी जब बनी तो
मिल बाँट खुशियाँ मनाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
.. मन की बात लिख दी सखी।
कुछ लोग हराने के लिए साथ देते हैं और जीतते ही झंडाबरदार बनकर सबसे आगे कूदते है।
यथार्थपरक गीत के लिए बहुत बधाई मित्र।
मसलना और कुचलना ही उनकी आदत है, नफ़रत और हसद ही उनकी फ़ितरत है.
दर-दर की ठोकर से मजबूत होकर
चले राह अपनी सभी आस खोकर
हर छाँव सर से उनकी गिराकर
राहों में काँटे बिछाने चले
उठे वे तो जबरन गिराने चले ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
दूसरों को गिराकर आगे बढ़ने की।
यथार्थ को बयां करती सुंदर रचना।