मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी


Hindi diwas



आगे बढ़ ना सकेंगे जब तक,

                 बढ़े ना अपनी हिंदी ।

                भारत की गौरव गरिमा ये,

                 राष्ट्र भाल की बिंदी ।


                बढ़ा मान गौरवान्वित करती,

                मन में भरती आशा।

                सकल विश्व में हो सम्मानित,

                बने राष्ट्र की भाषा ।


               गंगा सी पावनी है हिन्दी,

               सागर सी गुणग्राही ।

               हर भाषा बोली के शब्दों को ,

               खुद में है समाई ।


               सारी भगिनी भाषाओं को, 

               लगा गले दुलराती।

               तत्सम, तत्भव, देशी , विदेशी,

               सबको है अपनाती।


              आधे-अधूरे शब्दों का भी, 

               बन जाती है सहारा ।

               सारे भारत में संपर्कित,

               भावों की रसधारा।


               स्वाभिमान-सद्भाव जगाती,

               संस्कृति की परिभाषा।

               सर्वमान्य हो सकल जगत में,

               यही सबकी अभिलाषा।


                विश्वमंच पर गूँजे इक दिन,

                हिंदी का जयकारा ।

                बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी,

                यही अरमान हमारा ।



पढ़िए मेरी एक और रचना कुण्डलिया छंद में...

● हिंदी अपनी शान




टिप्पणियाँ

  1. विश्वमंच पर गूँजे इक दिन,

    हिंदी का जयकारा ।

    बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी,

    यही अरमान हमारा ।

    आपकी प्रार्थना के साथ हमारी प्रार्थना भी शामिल है, हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सुधा जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, कामिनी जी , तहेदिलसे धन्यवाद एवं आभार आपका ।

      हटाएं
  2. हम सबों का भी यही अरमान है। गौरवान्वित कराती हुई कृति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. विश्वमंच पर गूँजे इक दिन,
    हिंदी का जयकारा ।
    बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी
    यही अरमान हमारा ।//
    मातृभाषा हिन्दी के प्रति स्नेहिल कामनाओं को संजोती सुन्दर रचना प्रिय सुधा जी।यद्यपि हिन्दी विश्व मंच पर निरंतर विस्तार पा रही है फिर भी यही लगता है कि इसे और उँचाई पर होना चाहिये।इस मधुर रचना के जरिये आपने हर हिन्दी प्रेमी के मन की बात कही है।हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं आपको।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी रेणु जी !आपको भी हिंदी दिवस की अनंत शुभकामनाएं।
      बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका ।

      हटाएं
  4. हिंदी के प्रति अपने मनोभावों को व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना, सुधा दी। हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ सितंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 'पांच लिंको का आनंद' मंच पर साझा करने के लिए मेरी रचना चयन करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी !

      हटाएं
  6. बहुत सुंदर सृजन सुधा जी हमारी राजभाषा को और ऊंचा स्थान मिले आपकी आशावादी सकारात्मकता कविता की हर पंक्ति में झलक रही है ।
    बहुत सुंदर ।
    हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी !
      आपको भी हिन्दी दिवस की अनंत शुभकामनाएं।

      हटाएं
  7. बने राष्ट्रभाषा हिन्दी
    यह अरमान हमारे हैं ,
    हिंदी प्रेमियों के मन के भाव
    इस रचना में उतारे हैं ।
    सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, सुन्दर काव्य पंक्तियां !!
      हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका 🙏🙏

      हटाएं
  8. विश्वमंच पर गूँजे इक दिन,

    हिंदी का जयकारा ।

    बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी,

    यही अरमान हमारा ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुंदर कहा आपने जन-जन के बोल सृजन में समेट लिए।
    सराहनीय सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  10. हिंदी के लिए सुंदर सर्वोत्तम भावों से परिपूर्ण उत्कृष्ट रचना । बधाई सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  11. गोपेश मोहन जैसवाल18 सितंबर 2022 को 9:04 am बजे

    राष्ट्रभाषा हिंदी की ख़ूबियों को उजागर करने वाली एक बहुत ख़ूबसूरत रचना !
    इस कविता का सबसे सुन्दर सन्देश यह है कि -
    हिंदी को और हिंदीभाषियों को, देश की सभी भाषाओँ का सम्मान करते हुए उनसे प्रेम-सम्बन्ध स्थापित करने चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुन्दर रचना सखी

    जवाब देंहटाएं
  13. विश्वमंच पर गूँजे इक दिन,
    हिंदी का जयकारा ।
    बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी,
    यही अरमान हमारा ।
    बहुत सुन्दर अभिलाषा.., आपके स्वर के साथ हमारा स्वर भी सम्मिलित है सुधा जी ! अति सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, मीनाजी, दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

      हटाएं

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