मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

पुस्तक समीक्षा :- तब गुलमोहर खिलता है

 

Book review

मन की बंजर भूमि पर,

कुछ बाग लगाए हैं ।

मैंने दर्द को बोकर,

अपने गीत उगाए हैं

दर्द के बीजों से उगे गीत पढ़ने या सुनने की चाह संम्भवतः उन्हें होगी जो संवेदनशील होंगे भावुक होंगे और कुछ ऐसा पढ़ने की चाह रखते होंगे जो सीधे दिल को छू जाय । यदि आप भी ऐसा कुछ तलाश रहे हैं तो यकीनन ये पुस्तक आपके लिए ही है । श्रृंगार के चरम भावों को छूती इस पुस्तक का नाम है 'तब गुलमोहर खिलता है '

जी हाँ ! ये अद्भुत काव्य संग्रह ब्लॉग जगत की सुपरिचित लेखिका एवं सुप्रसिद्ध कवयित्री आदरणीया मीना शर्मा जी की तृतीय पुस्तक 'तब गुलमोहर खिलता है' के रूप में साहित्य प्रेमियों के लिए अनुपम भेंट हैं । 

आदरणीया मीना शर्मा जी 2016 से ब्लॉग जगत में ' चिड़िया' नामक ब्लॉग पर कविताएं एवं  'प्रतिध्वनि' ब्लॉग पर गद्य रचनाएं प्रकाशित करती हैं । सौभाग्य से ब्लॉग जगत में ही मेरा परिचय भी आपसे हुआ और मुझे आपकी रचनाओं के आस्वादन करने एवं आपसे बहुत कुछ सीखने समझने के सुअवसर प्राप्त हुए ।

प्रस्तुत पुस्तक आपकी तृतीय पुस्तक है,  इससे पहले 2018 में प्रथम कविता संग्रह  'अब ना रुकूँगी' और उसके बाद 2020 में 'काव्य प्रभा' नामक साझा संकलन एवं 2021 में साझा कविता संग्रह 'ओस की बूँदे' भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

साहित्यिक गतिविधियों में शालीनता एवं संवेदनशीलता की परिचायक आदरणीया मीना शर्मा जी की पुस्तक 'तब गुलमोहर खिलता है' में इनकी पूरी 68 कविताएं संकलित हैं, जिन्हें दो भागों में विभक्त किया गया है प्रत्येक भाग में 34 , 34  कविताएं हैं। 

बहुत ही मनमोहक सिंदूरी गुलमोहर की छटा बिखेरता आकर्षक कवर पृष्ठ एवं भूमिका में हिन्दी के प्राध्यापक प्रसिद्ध हिन्दी ब्लॉगर एवं लेखक आदरणीय दिलवाग सिंह विर्क जी द्वारा लिखित सम्पूर्ण रचनाओं का सारांश इसकी महत्ता को और भी रुचिकर बना रहा है ।

तदुपरांत 'पाठकों से' में स्वयं लेखिका के भावोद्गारों का समावेश हैं जिसमें आपने अपना परिचय देते हुए अपने जीवन के विभिन आयामों को साझा कर पाठकों से  संवाद स्थापित किया है एवं अंत में अपनी इस बौद्धिक सम्पत्ति को अपने अराध्यदेव मीरा और राधा के प्राणप्यारे मनमोहन को सप्रेम समर्पित किया है।

अब स्वयं प्रेम के प्रतीक मुरलीधर मनमोहन जिनके अराध्य हैं उनकी लेखनी से प्रेम उद्धृत ना हो ऐसा कैसे हो सकता है , अतः इनकी रचनाओं का मुख्य स्वर प्रेम है। प्रेम और श्रृंगार रस से ओतप्रोत इनकी कविताओं में चिंतन उसके अर्थ को गहराई प्रदान करता है।

एक उदाहरण देखिये..

गीत के सुर सजे, भाव नुपुर बजे,

किन्तु मन में न झंकार कोई उठी।

चेतना प्राण से,  वेदना गान से,

प्रार्थना ध्यान से, कब अलग हो सकी ?

लाख पर्वत खड़े मार्ग को रोकने,

प्रेम सरिता का बहना कहाँ थम सका ?

दो नयन अपनी भाषा में जो कह गये

वो किसी छन्द में कोई कब लिख सका ?

प्रेम नयनों की भाषा है, अपरिभाषित प्रेम मूक है, प्रेम की अभिव्यक्ति करना आसान नहीं। और क्या- क्या है प्रेम ? देखिये क्या कहती हैं कवयित्री !

इसी प्रेम ने राधाजी को

कृष्ण विरह में था तड़पाया,

इसी प्रेम ने ही मीरा को,

जोगन बन, वन-वन भटकाया ।

आभासी ही सदा क्षितिज पर

गगन धरा से मिलता है ।

प्रेम बड़ा छलता है

साथी प्रेम बड़ा छलता है ।

तो प्रेम छलिया है ? नहीं सिर्फ छलिया नहीं । बहुत कुछ है प्रेम, तभी तो आप अपनेआप को असमर्थ पाती हैं प्रेम को परिभाषित करने में ।  'उलझन' में कहती हैं-

परिभाषित प्रेम को कैसे करू्ँ,

शब्दों में प्यार कहूँ कैसे ?

जो वृंदावन की माटी है,

उसको श्रृंगार कहूँ कैसे ?


प्रेम नहीं शैय्या का सुमन,

वह पावन पुष्प देवघर का !

ना चंदा है ना सूरज है,

वह दीपक है मन मंदिर का !

है प्यार तो पूजा ईश्वर की,

उसको अभिसार कहूँ कैसे ?


है प्रेम तो नाम समर्पण का,

उसको अधिकार कहूँ कैसे ?

आपकी रचनाओं में प्रेम की ऐसी अनुभूति है जो हृदय को झंकृत कर दे ।  साथ ही एक अध्यापिका होने के कारण अभिव्यक्ति का हर शब्द बहुत ही संयमित और मर्यादित भी ।

अब जहाँ प्रेम वहाँ सुखद संयोग या फिर वियोग !इसीलिए तो कहते हैं इसे प्रेम रोग ! एक बार लग गया तो लग गया । ऐसा स्वयं कवयित्री करती हैं..

प्रीत लगी सो लगि गई, अब ना फेरी जाय ।

बूँद समाई सिंधु में, अब ना हेरी जाय ।।


परदेसी के प्रेम की , बड़ी अनोखी रीत ।

बिना राग की रागिनी, बिना साज का गीत ।।

इनकी कविताओं की नायिका परदेशी के प्रेम में बंध गयी है  एक उदाहरण 'क्यों बाँधा मुझको बंधन में'..

बंधन यह उर से धड़कन का,

बंधन श्वासों से स्पंदन का,

यह बंधन था मन से मन का,

बंधन प्राणों से ज्यों तन का !

मन के अथाह अंधियारे में,

जीवन बीतेगा भटकन में !

क्यों बाँधा मुझको बंधन में ?

विछोह की पीड़ा में अपने प्रेम की यादों को अपना अवलंबन बनाया तो चेतना का 'दीप जल उठा' ।

प्राणों की वर्तिका,

बुझी-बुझी अनंत काल से !

श्वासों के अब सुमन 

लगे थे, टूटने ही डाल से !

यूँ लगा था आत्मा

बिछड़ गई हो देह से !

चेतना का दीप 

जल उठा, तुम्हारे स्नेह से !

प्रेम मे वियोग पीड़ादायक है लेकिन वफा हो तो वियोग की घड़ियां भी जैसे तैसे कट ही जाती हैं , इसके विपरीत धोखेबाज और बेवफाओं से आगाह करते हुए कवयित्री कहती हैं

मंजिल है दूर कितनी,

इसकी फिकर न करिए

बस हमसफर राहों के 

चुनिए जरा सम्भलकर...


काँटे भी ढूँढ़ते हैं,

नजदीकियों के मौके

फूलों को भी दामन में,

भरिये जरा सम्भलकर...

कितना भी सम्भलकर चलो फिर भी कुछ अनहोनियाँ हो ही जाती हैं जिंदगी में ।  हमें तो बस कुछ सीखते जाना चाहिए जिन्दगी से, आपकी तरह...

जिंदगी हर पल कुछ नया सिखा गई,

ये दर्द में भी हँसकर जीना सिखा गई ।


यूँ मंजिलों की राह भी आसान नहीं थी,

बहके कदम तो फिर से सम्भलना सिखा गई

इतना कुछ सिखाती जिंदगी आखिर है क्या ये जिंदगी ? देखिये आपके अनुसार -

गम छुपाकर मुस्कराना, बस यही है जिंदगी !

अश्क पीकर खिलखिलाना, बस यही है जिंदगी !


टूटकर गिरना मेरे दिल का, तेरे कदमों में यूँ

और तेरा ठोकर लगाना,  बस यही है जिंदगी !

कब तक कोई इस तरह ठोकरें सहे । इकतरफा प्यार  नायक की बेरुखी आखिरकार नायिका ने जब एकाकी रहने का मन बनाया , निःशब्द करती रचना  'एकाकी मुझको रहने दो' ।


कोमल कुसुमों में, 

चुभते काँटे हाय मिले,

चंद्र नहीं वह अंगारा था

जिसको छूकर हाथ जले,

सह-अनुभूति सही ना जाये

अपना दर्द स्वयं सहने दो ।

एकाकी मुझको रहने दो ।

मीना जी की सभी कविताएं पाठक के मन में एक कहानी सी बुनती हैं । कहीं-कहीं तो भाव इतने गहन हैं कि मन ठहर सा जाता है ! 

कह गया कुछ राज की बातें, मेरा नादान दिल

अब लगे उस अजनबी को क्यों सुनाई दोस्तों !


कुछ तड़प कुछ बेखयाली और कुछ गफलत मेरी,

उफ ! मोहब्बत नाम की आफत बुलाई दोस्तों !

एक से बढ़कर एक  'तल्खियां'  उनके मन की जिन पर बीती हो । बीती भी ऐसी कि क्या कहें ,'हद हो गयी'

देखकर हमको,  तेरा वो मुँह घुमा लेना सनम,

बेरुखी तेरी, दिल ए बेजार की हद हो गई ।

हद कितनी भी हो , मोहब्बत में बेरुखी मिले बेबफाई मिले, आपकी कविताओं की नायिका हौसला नही छोड़ती । 

एक उदाहरण -  'सजदे नहीं लिखती' से --

छुप-छुप के रोयें कब तलक, घुट-घुट के क्यों मरें?

जो सच लगा वह कह दिया, परदे नहीं लिखती ।


'हर दौर गुजरता रहा' में --

कच्चे घड़े सी ना मैं, छूते ही बिखर जाऊँ,

भट्टी में आफतों की, मजबूत दिल बनता रहा ।

प्रेम का प्रतिफल नहीं मिलने पर वे टूटकर बिखरती नहीं हैं बल्कि अपने अन्दर प्रेम की खुशबू को जज्ब कर लेती हैं। उनका प्रेम अमर्त्य है. इसलिए उनकी अंतरात्मा में प्रेम की लौ जलती रहती है।

'दर्द का रिश्ता' में देखिये--

निर्मलता की उपमा से,

क्यों प्रेम मलिन करूँ अपना


'जरूरत क्या दलीलों की' शीर्षक कविता में कहती हैं

तुम हारे तो मैं हारी जो तुम जीते तो मैं जीती

करूँ क्यों प्रेम को साबित, जरूरत क्या दलीलों की ?

आपकी कविताओं की नायिकाएं सिर्फ रोती नहीं हैं. वे संघर्ष करती हैं और अपने सम्मान एवं स्वाभिमान को अंत तक बचाए रखती हैं । यही आपके काव्य की खासियत भी है ।

जहाँ मिल रहे गगन धरा

मैं वहीं तुमसे मिलूँगी,

अब यही तुम जान लेना 

राह एकाकी चलूँगी ।

संग्रह की पहली कविता 'तब गुलमोहर खिलता है'(जो इस संग्रह का शीर्षक भी है) में भी कवियत्री गुलमोहर के माध्यम से विकट परिस्थितियों में भी हार न मानकर जीवन संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देते हुए कहती हैं-

फूले पलाश खिल जाते हैं,

टेसू आँसू बरसाते हैं,

दारुण दिनकर की ज्वाला में,

जब खिले पुष्प मुरझाते हैं,

सृष्टि होती आकुल व्याकुल,

हिमगिरि का मुकुट पिघलता है

तब गुलमोहर खिलता है !

भावों की गहनता में छुपा संदेश मंत्रमुग्ध करता है  गुलमोहर जो प्रेम मे खिला है समस्त सृष्टि से प्रतिकार में उसे क्या मिला है ? तब भी गुलमोहर खिलता है।

ऐसे ही जीवन अनुभवों एवं मानवीय संवेदनाओं को काव्य रूप में संप्रेषित करती रचनाएं ' नदिया के दो तट',  मैं वहीं रह गयी, शरद पूर्णिमा के मयंक से, इन्द्रधनुष, कवि की कविता, कहो न कौन से सुर में गाऊँ, मौन दुआएं अमर रहेंगी, ओ मेरे शिल्पकार,  बाँसुरी (1)और (2) ,  द्वीप, स्वप्न गीत, एक कहानी अनजानी, फासला क्यूँ है, सपना, सवाल अजीब से, नुमाइश करिये, कहता होगा चाँद, बंदिश लबों पर,  शिकायत, ढूढ़े दिल आदि  बहुत ही उत्कृष्ट, अप्रतिम एवं पठनीय कविताओं का संग्रह है - 'तब गुलमोहर खिलता है'

 मानवीय संवेदनाओं एवं गरिमामय प्रेम पर आधारित आपकी कविताओं की भाषा सहज एवं सरल है ।अधिकांश कविताएं गीत एवं गजल विधा में हैं विभिन्न अलंकारों से अलंकृत तत्सम एवं देशज शब्दों का सुन्दर प्रयोग काव्य को और आकर्षक बना रहा है।

कवयित्री स्वयं हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं अतः भाषागत त्रुटियाँ एवं किसी तरह की कोई कमी काव्य संग्रह में ढूँढकर भी नहीं मिल सकती फिर भी समीक्षा के नियमानुसार आलोचना की कोशिश करूँ तो बस एक कमी जो मुझे लगी वह है काव्य संग्रह का शीर्षक ।  चूँकि अधिकांश कविताएं प्रेम पर आधारित हैं तो शीर्षक प्रेम से सम्बंधित होता तो और भी बेहतर होता क्योंकि सतही तौर पर देखकर पाठक शीर्षक से शायद अंदाजा ना लगा पायें कि पुस्तक का आधार प्रेम है ।  हालांकि प्रस्तुत शीर्षक में वह संदेश छुपा है जो कवयित्री अपनी लेखनी के जरिए पाठकों तक पहुँचाना चाहती हैं एवं यही उनकी अधिकांश रचनाओं का सार भी है ।

अन्ततः काव्य सृजन की दृष्टि से प्रस्तुत काव्य संग्रह शिल्प सौंदर्य से युक्त बेहद उत्कृष्ट, पठनीय एवं संग्रहणीय हैं जो पाठक को अपने काव्याकर्षण में बाँध सकने में पूर्णतः सक्षम है ।

मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मीना जी की यह पुस्तक साहित्य जगत में अपना स्थान निहित करेगी ।  मेरी समीक्षा की सत्यता को परखने हेतु आप भी पुस्तक अवश्य पढ़िएगा ! 

अंत में मीनाजी को हार्दिक बधाई असीम शुभकामनाएं।

पुस्तक :- तब गुलमोहर खिलता है

लेखक :- मीना शर्मा

प्रकाशकईमेल :- publish@bookrivers.com

मूल्य :- 200/-रूपये

बेबसाइट :-www.bookrivers.com


टिप्पणियाँ

  1. 'शब्दों की मीनाकारी में मीनाजी का कोई जोड़ नहीं' इस तथ्य को बड़ी खबसूरती और कुशलता से उकेरा है सुधा जी ने अपनी इस सधी समीक्षा में! आप दोनोंका आभार और बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी ! आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से श्रम साध्य हुआ..
      सादर आभार ।

      हटाएं
  2. जितनी सुंदर रचनाएँ, उतनी सुंदर सार्थक समीक्षा ।
    गीतों की शब्दावली और भाव बहुत ही सुंदर ।
    मीना जी की ये पुस्तक साहित्य के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित करे मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ ।
    मीना जी और सुधा जी आप दोनों को हार्दिक बधाई💐💐

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी ! सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सबीना जी!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं
  4. बहुत सुन्दर और सूक्ष्म विश्लेषण । बहुत बहुत शुभ कामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद आ.आलोक जी !आपके आशीर्वचन पाकर प्रोत्साहित हूँ ।

      हटाएं
  5. "तब गुलमोहर खिलता है"
    कब ?
    तो समीक्षा उत्तर दे रही है जब प्रेम समतल से उतर कर ऊँचे नीचे रास्तों को पार करता है,आकाश में विचरण करता है, इंद्रधनुष के रंगों से ज्यादा आकर्षक और कोहरे के पर्दे में छुपी भोर अंतस्थल तक उतरती हैं।
    सुधा जी आपकी सांगोपांग समीक्षा ने कृति को अनमोल बना दिया शृंगार रस की अभिनव रचनाओं की झलकियाँ पुस्तक की वृहद छवि उकेर रही है।
    शानदार समीक्षा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई सुधा जी।
    मीना जी को काव्य जगत को इस अनमोल उपहार के लिए हृदय से बधाई एवं सुनिश्चित सफलता के लिए अनंत शुभकामनाएं।🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी आपकी सराहना पाकर समीक्षा सार्थक हो गयी दिल से आभार आपका उत्साहवर्धन हेतु।

      हटाएं
  6. रोचक, सीधी व गहन और किताब पढ़ने को उत्सुकता बढ़ाने वाली समीक्षा।
    मीना जी को बहुत बार ब्लॉग पर पढा है और ये हमारा सौभाग्य है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी रोहिताश जी, हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

      हटाएं
  7. प्रिय सुधा जी,बहुत ही भावपूर्ण और सधी समीक्षा के रूप्में प्रिय मीना जी की सुन्दर पुस्तक का सूक्ष्म विश्लेषण पढ़कर बहुत अच्छा लगा।मीना जी ब्लॉग जगत में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं।उनका साहित्यिक सफर, जीवन के दायित्वों के बीच, जितना दुरूह-सा रहा उतना ही गौरवपूर्ण भी रहा।उनकी रचनाएँ बहुत सुन्दर और भावपूर्ण होती हैं। भावों की तरलता के प्रवाह के साथ शब्दों के चयन में अद्भूत बुद्धि-कौशल दिखाई देता है।जिनके संयोग से माधुर्य से भरी रचनाएँ पाठकों के मन को सहजता से छू जाती हैं।मैं भी इन दिनों उनके तीन कविता संग्रहों का अवलोकन कर रही हूँ।सौभाग्य से तीनों मेरे पास हैं।तीनों की रचनाओं में उनके भीतर छिपी अत्यंत संवेदनशील और मानवीय मूल्यों की पक्षधर कवयित्री के दर्शन होते हैं।संयोग ही है कि मेरा उनके ब्लॉग से परिचय भी उनकी बहुत प्यारी रचना-'तब गुलमोहर खिलता है 'से ही हुआ था जो अब उनके काव्य संग्रह का शीर्षक भी है।और पुस्तक के शीर्षक के रूप में प्रेम विषयक शीर्षक क्यों नहीं चुना गया?--- इस बारे में कहना चाहूंगी कि ये प्रेम का ही गुलमोहर है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी चमक दमक के साथ खिला है।अन्त में,आपने सुन्दर समीक्षा के रूप अपने उत्तम पाठक और समीक्षक होने का परिचय दिया है।मीना जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं और आपको हार्दिक आभार इस स्तुत्य मननशील प्रयास के लिए ❤❤❣❤🙏

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    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद रेणु जी, आपकी सराहना पाकर समीक्षा सार्थक हुई और श्रम साध्य।
      सस्नेह आभार।

      हटाएं
  8. फूले पलाश खिल जाते हैं,
    टेसू आँसू बरसाते हैं,
    दारुण दिनकर की ज्वाला में,
    जब खिले पुष्प मुरझाते हैं,
    सृष्टि होती आकुल व्याकुल,
    हिमगिरि का मुकुट पिघलता है
    तब गुलमोहर खिलता है !
    👌👌👌🙏❤

    जवाब देंहटाएं
  9. सुश्री मीना शर्मा की कविताओं में गोमुख की भागीरथी की जैसी पवित्रता, निर्मलता और सहज प्रवाह है.
    मीना जी की कविताओं में काव्य-सौन्दर्य के साथ-साथ हम भाव-सौन्दर्य का भी आनंद लेते हैं.
    भगवान करे, उनका गुलमोहर खिलता रहे और खिलता ही रहे.

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    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. सही कहा सर ! हृदयतल से धन्यवाद आपका ।
      सादर आभार

      हटाएं
  10. मैं आपके इस स्नेह से अभिभूत हूँ सुधाजी। और क्या कहूँ ? यह समीक्षा नहीं, स्नेह है आपका, वरना आज कौन किसी की पुस्तक पर लिखने के लिए इतना वक्त निकालता है। सच कहूँ तो मैं इस मामले में बड़ी सौभाग्यशाली रही हूँ। ब्लॉग जगत में प्रवेश करने पर कुछ कविताएँ लिखने के बाद ही आदरणीय अयंगर सर जी का मार्गदर्शन मिला जिन्होंने तकनीकी और लेखन संबंधी त्रुटियों को सुधारते हुए हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया। उसके बाद तो हिंदी ब्लॉग जगत ने मुझे इतना प्यार व सहयोग दिया कि आज मेरे ब्लॉग पर मेरी करीब 250 कविताएँ मौजूद हैं और तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मैं पूरी ईमानदारी से स्वीकार करती हूँ कि यदि मुझे इन पाठकों का उत्साहवर्धन न मिलता तो फिर एक बार, मेरे लेखन की गाड़ी चंद रचनाएँ लिखने के बाद ही बंद पड़ गई होती, जैसा मेरे साथ पहले भी कई बार हो चुका है। मैं ब्लॉग जगत से किसका नाम लूँ, किसका न लूँ ? लगभग सभी ने कभी ना कभी मेरे ब्लॉग पर आकर मुझे स्नेह दिया है।
    आदरणीया सुधाजी, इस समीक्षा से लोग मेरी पुस्तक के प्रति तो निश्चित रूप से उत्सुक होंगे ही, परंतु आपके सूक्ष्म अवलोकन, अपने साथी ब्लॉगर के प्रति आपकी भावना और आपके लेखन कौशल के भी कायल होंगे ऐसा मुझे विश्वास है। हृदयपूर्वक आभार एवं बहुत सारा प्यार आपको !!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मीनाजी अहोभाग्य मेरा कि मुझे आपकी पुस्तक पढ़ने और उस पर समीक्षा करने का सुअवर प्राप्त हुआ समीक्षा में मेरी त्रुटियों को नजरअंदाज कर सराहनासम्मन्न प्रतिक्रिया से मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका व अन्य सभी साथियों का दिल से धन्यवाद एवं आभार।

      हटाएं
  11. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-4-22) को "सॄष्टि रचना प्रारंभ दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा".(चर्चा अंक-4389)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी समीक्षा को चर्चा मंच पर चयन हेतु ।

      हटाएं
  12. सौभाग्य से मुझे इस पुस्तक को पढ़ने का अवसर मिला। अब इस पर समीक्षा पढकर बहुत अच्छा लगा। बहुत ही बारीक विश्लेषण हुआ है पुस्तक का।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. सर !
      मेरे ब्लॉग पर आपका आगमन ही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है आपकी बहुत बहुत स्वागत एवं अभिनंदन।

      हटाएं
  13. मन में उत्सुकता जागती बहुत अच्छी समीक्षा प्रस्तुति
    हार्दिक शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत अच्छी पढने को प्रेरित करती समीक्षा. धन्यवाद.
    मीना जी को बधाई. गुलमोहर की छाँव सबको मिले.
    नव संवत्सर शुभ हो .

    जवाब देंहटाएं
  15. माननीया मीना जी की काव्य-प्रतिभा से भला कौन अपरिचित है इस ब्लॉग जगत में? यह सूचना मेरे लिए नवीन एवं (अत्यधिक प्रसन्नतादायिनी) है कि यह उनका तृतीय काव्य-संकलन है जो पुस्तकाकार रूप में आया है। आपने पुस्तक का विस्तृत चित्र अपने (एवं मीना जी के भी) पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है सुधा जी। पढ़कर यूं प्रतीत हो रहा है जैसे पुस्तक में निहित जल से मेरे हृदय के उद्यान को सिंचित कर दिया है आपके इस प्रयास ने। बधाई एवं शुभकामनाएं मीना जी को तथा आभार आपका सुधा जी। उनकी पुस्तक से आपने अनेक उद्धरण दिए हैं जिनमें से निम्नलिखित पंक्तियां मेरे हृदय में सदा के लिए समाहित हो गई हैं:

    प्रीत लगी सो लगि गई, अब ना फेरी जाय।
    बूँद समाई सिंधु में, अब ना हेरी जाय॥

    पुस्तक का शीर्षक इतना अनुपयुक्त भी नहीं है क्योंकि गुलमोहर भी प्रेम का ही प्रतीक है। एक फ़िल्मी गीत भी इस सत्य को प्रकट करता है:

    गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता
    मौसम-ए-गुल को हँसाना भी हमारा काम होता

    जवाब देंहटाएं

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