मन की उलझनें
बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती । बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था । पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ? लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (२६-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-३१ 'पावस ऋतु' (चर्चा अंक -३७७४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
मेरी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी!
हटाएंशुक्र मनाएं सौंधी माटी
जवाब देंहटाएंहल्या अपने गाँव जो आये
कोरोना ने शहर छुड़ाया
गाँव हरेला तीज मनाये..
बहुत सुन्दर सृजन सुधा जी । वास्तव में इस तरह की.रौनक देखने को कोरोना काल में आँखें तरस गई ।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीना जी !
हटाएंये सच है कई कई दिनों बाद अधिकतर लोग अपने घर हैं ... चाहे किसी भी वजह से ...
जवाब देंहटाएंऔर अपने अपने मन का कर पाए हैं इस धरती को रोप पाए हैं ... हरियाली तीज मना पाए हैं ...
सुन्दर मोहक रचना आँचल के शब्द लिए ...
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद नासवा जी!
हटाएंबहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंगाय भैंस रम्भाती आँगन
बछड़े कुदक-फुदकते हैं
भेड़ बकरियों को बिगलाते
ग्वाले अब घर-गाँव में हैं
बहुत सुंदर पंक्तियाँ।
सस्नेह आभार, भाई!
हटाएंशुक्र मनाएं सौंधी माटी
जवाब देंहटाएंहल्या अपने गाँव जो आये
कोरोना ने शहर छुड़ाया
गाँव हरेला तीज मनाये
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, सखी!
हटाएंबहुत सुंदर सरस रचना दृश्य चित्र उत्पन्न करती मनभावन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी!
हटाएंबहुत सुंंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मनोज जी!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार राकेश जी!
हटाएंप्रिय सुधा जी , आपकी ये सुंदर रचना तभी पढ़ ली थी | सोचती तो मैं भी कुछ ऐसा ही गाँव की बेटी हूँ ना | पर शायद इतना अच्छा लिख ना पाती | कोरोना ने बहुत कुछ तोड़ा है पर गाँव -गली और मातृभूमि की सोई महिमा को जगाया है | आपकी सभी रचनाएँ पढ़ रहीं पर कुछ निजी कारणों की वजह से सभी ब्लॉग पर आ नहीं पाती | दूसरे आपकी रचना मेरी रीडिंग लिस्ट में नहीं पहुँच रही थी| हाँ फेसबुक पर नजर आ जाती हैं पर वहां भी कम ही जाना रहता है | आज अनफ़ॉलो करके दुबारा फ़ॉलो किया है आपका ब्लॉग आशा है अब जरुर रचना समय पर मिल जायेगी | हार्दिक शुभकामनाएं इस सुंदर रचना पर | इस पर ना लिखती अफ़सोस रहता | जल्द ही दूसरी रचनाओं पर भी प्रतिक्रिया लिखती हूँ | जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |सस्नेह
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी आपकी उपस्थिति मन खुश कर देती है और आपकी प्रतिक्रिया रचना को सार्थकता प्रदान करती है...
हटाएंपर मैं समझ सकती हूँ आपकी व्यस्तता व अनेक कारणों को.. क्योंकि मैं भी कई बार ऐसी ही स्थिति से गुजरती हूँ चाहकर भी ब्लॉग पर नहीं आ पाती भूले भटके पहुंच भी जाऊं तो पढ़ने भर का समय होता है ऐसे में प्रतिक्रिया छूट जाती है...कोई नहीं सखी हम साथ हैं इतना काफी है आगे कभी न कभी तो स्थिति-परिस्थिति अनुकूल होगी न... फिर देखेंगी तब तक यूँ ही कभी कभार का साथ बनाए रखना...।
आपको व आपके परिवार को जन्माष्टमी की अनन्त शुभकामनाएं।
शुक्र मनाएं सौंधी माटी
जवाब देंहटाएंहल्या अपने गाँव जो आये
कोरोना ने शहर छुड़ाया
गाँव हरेला तीज मनाये
वाह !!!!!!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी!
हटाएंआपका हार्दिक अभिनन्दन है प्रिय सुधा जी |
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