बी पॉजिटिव

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  "ओह ! कम ऑन मम्मा ! अब आप फिर से मत कहना अपना वही 'बी पॉजिटिव' ! कुछ भी पॉजिटिव नहीं होता हमारे पॉजिटिव सोचने से ! ऐसे टॉक्सिक लोगों के साथ इतने नैगेटिव एनवायरनमेंट में कैसे पॉजिटिव रहें ?   कैसे पॉजिटिव सोचें जब आस-पास इतनी नेगेटिविटी हो ?.. मम्मा ! कैसे और कब तक पॉजिटिव रह सकते हैं ? और कोशिश कर भी ली न तो भी कुछ भी पॉजिटिव नहीं होने वाला !  बस भ्रम में रहो ! क्या ही फायदा ? अंकुर झुंझलाहट और  बैचेनी के साथ आँगन में इधर से उधर चक्कर काटते हुए बोल रहा था ।  वहीं आँगन में रखी स्प्रे बोतल को उठाकर माँ गमले में लगे स्नेक प्लांट की पत्तियों पर जमी धूल पर पानी का छिड़काव करते हुए बोली, "ये देख कितनी सारी धूल जम जाती है न इन पौधों पर । बेचारे इस धूल से तब तक तो धूमिल ही रहते है जब तक धूल झड़ ना जाय" ।   माँ की बातें सुनकर अंकुर और झुंझला गया और मन ही मन सोचने लगा कि देखो न माँ भी मेरी परेशानी पर गौर ना करके प्लांट की बातें कर रही हैं ।   फिर भी माँ का मन रखने के लिए अनमने से उनके पास जाकर देखने लगा , मधुर स्मित लिए माँ ने बड़े प्यार से कहा "ये देख ...

पेड़-- पर्यावरण संतुलन की इकाई


woodcutter cutting a tree

हम अचल, मूक ही सही मगर
तेरा जीवन निर्भर है हम पर
तू भूल गया अपनी ही जरूरत
हम बिन तेरा जीवन नश्वर

तेरी दुनिया का अस्तित्व हैं हम
हम पर ही हाथ उठाता है,
आदम तू भूला जाता है
हम संग खुद को ही मिटाता है

अपना आवास बनाने को
तू पेड़ काटता जाता है
परिन्दोंं के नीड़ों को तोड़
तू अपनी खुशी  मनाता है

बस बहुत हुआ ताण्डव तेरा
अबकी तो अपनी बारी है
हम पेड़ भले ही अचल,अबुलन
हम बिन ये सृष्टि अधूरी है

वन-उपवन मिटाकर,बंगले सजा
सुख शान्ति कहाँ से लायेगा ?
साँसों में तेरे प्राण निहित तो
प्राणवायु कहाँ से पायेगा ?

चींटी से लेकर हाथी तक
आश्रित हैं हम पर ही सब
तू पुनः विचार ले आदम हम बिन
पर्यावरण संतुलित नहीं रह पायेगा ।


टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 16 मई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.संगीता जी !
      मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।

      हटाएं
  2. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन। नष्ट होते जंगल, पेड़ों का दोहन, मूक बैठा मानव... गहन चिंतन लिए बढ़िया रचना।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सकारात्मक संदेश देती रचना !

    जवाब देंहटाएं
  4. पर्यावरण संरक्षण के प्रति मनुष्यों की उदासीनता चिंतनीय है।आवश्यकता है आज प्रकृति के प्रति स्वंय के कर्तव्यों का बोध करने की अन्य लोगों को.भी प्रेरित करने की।
    सार्थक सृजन.सुधा जी।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  5. इतनी विभिषिका झेलने के बाद भी हम असुरी नींद से नहीं जागे तो क्या कहा जाए। न जाने हम कब सुधरेंगे। प्रभावी सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुधा जी,
    हम जो प्रतिक्रिया लिखे क्यों नहीं दीख रहा प्लीज आप स्पेम में चेक करिये न क्योंकि मेरे ब्लॉग पर.भी बहुत सारी प्रतिक्रिया स्पेम में जा रही जिसे not spam करके हम पब्लिश किए।
    शायद कुछ प्रतिक्रिया स्पेम में हों।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, श्वेता जी ! स्पेम में थी आपकी प्रतिक्रिया ..अन्य पोस्ट पर भी यही था । बहुत बहुत धन्यवाद बताने के लिए अब सभी को पब्लिश कर दिया...
      दिल से आभार आपका।

      हटाएं
  7. इन निरीह पेड़ों की व्यथा कौन जान सका है सिवाय कवि मन के।भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय सुधा जी।

    जवाब देंहटाएं

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