मन की उलझनें

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बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लगी तो शर्मा दम्पति खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,परन्तु साथ ही उसके घर से दूर चले जाने से दुःखी भी थे । उन्हें हर पल उसकी ही चिंता लगी रहती ।  बार-बार उसे फोन करते और तमाम नसीहतें देते । उसके जाने के बाद उन्हें लगता जैसे अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा, और उधर बेटा अपनी नयी दुनिया में मस्त था ।   पहली ही सुबह वह देर से सोकर उठा और मोबाइल चैक किया तो देखा कि घर से इतने सारे मिस्ड कॉल्स! "क्या पापा ! आप भी न ! सुबह-सुबह इत्ते फोन कौन करता है" ? कॉलबैक करके बोला , तो शर्मा जी बोले, "बेटा ! इत्ती देर तक कौन सोता है ? अब तुम्हारी मम्मी थोड़े ना है वहाँ पर तुम्हारे साथ, जो तुम्हें सब तैयार मिले ! बताओ कब क्या करोगे तुम ?  लेट हो जायेगी ऑफिस के लिए" ! "डोंट वरी पापा ! ऑफिस  बारह बजे बाद शुरू होना है । और रात बारह बजे से भी लेट तक जगा था मैं ! फिर जल्दी कैसे उठता"? "अच्छा ! तो फिर हमेशा ऐसे ही चलेगा" ? पापा की आवाज में चिंता थी । "हाँ पापा ! जानते हो न कम्पनी यूएस"... "हाँ हाँ समझ गया बेटा ! चल अब जल्दी से अपन...

चुप सो जा...मेरे मन ...चुप सो जा..!!!

   Multiple faces of a single person

       
 रात छाई हैघनी, पर कल सुबह होनी नयी,
        कर बन्द आँखें , रख  सब्र तू ,
            मत रो ,मुझे न यूँ सता.......
*चुप सो जा........मेरे मन.......चुप सो जा*.....!!!
    
 तब तक तू चुप सोया ही रह !
     जब तक न हो जाये सुबह ;
   नींद में सपनों की दुनिया तू सजा .........
*चुप सो जा.........मेरे मन......चुप सो जा*.......!!!
      
सोना जरुरी है, नयी शुरुआत करनी है ,
      भूलकर सारी मुसीबत, आस भरनी है ;
   जिन्दगी के खेल फिर-फिर खेलने तू जा.....
*चुप सो जा......मेरे मन........चुप सो जा*............!!!
     
सोकर जगेगा, तब नया सा प्राण पायेगा ,
    जो खो दिया अब तक, उसे भी भूल जायेगा ;
   पाकर नया कुछ, फिर पुराना तू यहाँ खो जा.......
*चुप सो जा ..........मेरे मन.........चुप सो जा*........!!!
    
दस्तूर हैं दुनिया के कुछ, तू भी सीख ले ;
     है सुरमई सुबह यहाँ,  तो साँझ भी ढ़ले ,
    चिलमिलाती धूप है, तो स्याह सी है रात भी....
     है तपिश जब दुपहरी,तो छाँव की सौगात भी...
     दुःख नरक से लग रहे तो, स्वर्ग भी है जिन्दगी ;
     चाह सुख की है तुझे तो ,कर ले तू भी बन्दगी....!
       पलकों में उम्मीदों के सपने तू सजा...... ...!
चुप सो जा.......मेरे मन...........चुप सो जा...........!!!
                                                               
                                  
  चित्र- "साभार गूगल  से"

टिप्पणियाँ

  1. है तपिश जब दुपहरी,तो छाँव की सौगात भी...
    दुःख नरक से लग रहे तो, स्वर्ग भी है जिन्दगी ;
    चाह सुख की है तुझे तो ,कर ले तू भी बन्दगी....!
    पलकों में उम्मीदों के सपने तू सजा...... ...!
    चुप सो जा.......मेरे मन...........चुप सो जा...........!!!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  2. तहेदिल से धन्यवाद ज्योति जी!
    सस्नेह आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. गोपेश मोहन जैसवाल2 अगस्त 2021 को 7:01 am बजे

    नैराश्य के अंधकार को सुलाने वाली और आशा के दीप जलाने वाली बहुत सुन्दर लोरी !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद सर! अनमोल प्रतिक्रिया से मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु।

      हटाएं
  4. कितनी सहजता से मन को समझा रही हैं । सच है कि हर रात के बाद सुबह होती है इसी लिए मन को धैर्य रखने के लिए मन को भी सोने के लिए कहा जा रहा है । सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद आ.संगीता जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ..
      सादर आभार।

      हटाएं

  5. दस्तूर हैं दुनिया के कुछ, तू भी सीख ले ;
    है सुरमई सुबह यहाँ, तो साँझ भी ढ़ले ,
    चिलमिलाती धूप है, तो स्याह सी है रात भी....
    है तपिश जब दुपहरी,तो छाँव की सौगात भी...
    दुःख नरक से लग रहे तो, स्वर्ग भी है जिन्दगी ;
    चाह सुख की है तुझे तो ,कर ले तू भी बन्दगी....!
    पलकों में उम्मीदों के सपने तू सजा...... ...!
    चुप सो जा.......मेरे मन...........चुप सो जा...........!!!...बहुत ही सुंदर और भावों से सराबोर कविता,इस अंतरा ने तो सभी की जिदंगी को अपने से जोड़ लिया,हर मन के एहसासों की सुंदर लड़ी जैसी कविता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं आपको सुधा जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी! सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु।

      हटाएं
  6. सोकर जगेगा, तब नया सा प्राण पायेगा ,
    जो खो दिया अब तक, उसे भी भूल जायेगा ;
    पाकर नया कुछ, फिर पुराना तू यहाँ खो जा.......
    *चुप सो जा ..........मेरे मन.........चुप सो जा*........!!! बेहद सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति सखी।

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  7. बहुत खूब... मन को छू लिया...��

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  8. बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद मीनू गुप्ता जी !
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं

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