भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी । बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया
अरे वाह्ह दी बरसा ऋतु का मनमोहक चित्र खींचती बहुत सुंदर कुंडलिनी।
जवाब देंहटाएंप्रणाम दी
सादर।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०६-०८-२०२३) को 'क्यूँ परेशां है ये नज़र '(चर्चा अंक-४६७५ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर, सावन मे शिवभक्ति में लीन काँवर यात्रा का अनुभव अनमोल है🙏
जवाब देंहटाएंभोले की भक्ति में सरोबर सुंदर …
जवाब देंहटाएंसावन की मनमोहक छटा बिखेरती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमृदुल काव्य कृति
जवाब देंहटाएंजय भोले शंकर !
जवाब देंहटाएंसुधा जी, आपकी वन्दना सुन कर भोले बाबा अति प्रसन्न होंगे.
हमारे घर के पास विशाल गौरी शंकर मन्दिर है.
सावन के हर सोमवार को तो वहां भक्तों का मेला सा लग जाता है.
वाह! सुधा जी ,भक्ति भाव से भीगी हुई सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बहुत मनमोहक सृजन
जवाब देंहटाएंसावन मास पर बहुत सुंदर मनहर कुंडलियां।
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