और एक साल बीत गया

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प्रदत्त पंक्ति ' और एक साल बीत गया' पर मेरा एक प्रयास  और एक साल बीत गया  दिन मास पल छिन  श्वास तनिक रीत गया  हाँ ! और एक साल बीत गया ! ओस की सी बूँद जैसी उम्र भी टपक पड़ी  अंत से अजान ऐसी बेल ज्यों लटक खड़ी  मन प्रसून पर फिर से आस भ्रमर रीझ गया  और एक साल बीत गया ! साल भर चैन नहीं पाने की होड़ लगी  और, और, और अधिक संचय की दौड़ लगी  भान नहीं पोटली से प्राण तनिक छीज गया और एक साल बीत गया ! जो है सहेज उसे चैन की इक श्वास तो ले जीवन उद्देश्य जान सुख की कुछ आस तो ले    मन जो संतुष्ट किया वो ही जग जीत गया  और एक साल बीत गया ! नववर्ष के अग्रिम शुभकामनाओं के साथ पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर -- ●  नववर्ष मंगलमय हो

आत्महत्या : माँ मेरी भी तो सुन लिया करो !

 

suicide story



"माँ !  मैं बहुत परेशान हूँ , आप आ जाओ ना यहाँ मुझे मिलने, मुझे आपसे बात करनी है" ।

"बेटा परेशानियां तो आती जाती रहती हैं जीवन में , इनसे क्या घबराना । और मैं तेरे ससुराल आकर क्या करूँगी ! तेरे ससुराली मुझे देखकर पता नहीं क्या सोचेंगे, कहीं और न चिढ़ जायें ।  वैसे मैंने पंडित जी से तेरी और दामाद जी की कुण्डली दिखाई ।  कुछ ग्रहदोष हैं तो कल ग्रहशांति के लिए जप करवा रही हूँ, तू चिंता न कर ग्रहशांति के बाद सब ठीक हो जायेगा । सब्र से काम ले" ।

"माँ !  मैं जब भी आपसे बात करती हूँ आप पंडित और ग्रहदोष की बातें करने लगते हो , कभी मेरी भी तो सुन लिया करो ना" !   (माँ की बात बीच में काट कर सुषमा ने नाराज होते हुए कहा और फोन रख दिया)


शीला को उसकी बहुत फिक्र थी परन्तु बेटी के घर का मामला है हमारे हस्तक्षेप से बात और ना बिगड़ जाय, यही सोचकर ना चाहते हुए भी टाल रही थी उसे।

अगले दिन शीला ने मंदिर में  ग्रहशांति की पूजा रखवायी और बेटी के घर की सुख-शांति के लिए उपवास रखकर पूजन में बैठी ही थी कि तभी सुषमा का फोन आया ।

"माँ ! मैं बड़ी मुश्किल से इधर-उधर के बहाने बनाकर घर आई तो आप तो घर पर हैं ही नहीं । माँ प्लीज ! थोड़ी देर के लिए जल्दी से आ जाओ फिर मुझे निकलना है"।

"अरे ! कैसे आऊँ ?  मैं तो पूजा में हूँ और पूजा से बीच में उठना अशुभ होता है बेटा ! और सुन, तू आई क्यों ? वहाँ सब इस बात से और भी नाराज हो जायेंगे तुझसे ।   सुषमा बेटा ! समझदारी से काम ले । इससे पहले कि उन्हें शक हो तू अभी का अभी वापस जा !  मैं पूजा के बाद कॉल करूँगी तुझे ।  ठीक है" । कहकर फोन रखकर शीला फिर पूजा में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी ।

पूजन समाप्ति के साथ ही बेटी की जीवन लीला भी समाप्त हो गयी । उसी साँझ सूचना मिली कि तुम्हारी बेटी ने आत्महत्या कर दी। पंखे से लटकी लाश को पुलिस शिनाख्त के लिए ले जा रही है । तुम लोग आना चाहते हो तो जल्दी आ जाओ ।


टिप्पणियाँ

  1. सुन लेने से दुविधा दूर हो जाती है
    मार्मिक...
    सादर...

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    1. जी, यशोदा जी ! सही कहा आपने ...
      तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

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  2. कभी कभी समझ के फेर में बड़ी बड़ी दुर्घटना हो जाती है

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    उत्तर
    1. जी, सही कहा आपने समझ के फेर ....
      अत्यंत आभार एव धन्यवाद आपका।

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  3. ओह, बहुत मार्मिक । बेटियों की बात सुननी चाहिए ।
    वैसे कई बार बहुत छोटी छोटी बात पर भी बात बढा चढ़ा कर बता दी जाती है । ऐसे मामलों को बहुत धैर्य से ही सुलझाया जा सकता है ।।
    विचारणीय लघु कथा ।

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    1. जी, सही कहा आपने...बात सुनने समझने से शायद उसके मन की दुविधा दूर होती या फिर उसे मानसिक संबल ही मिल जाता ।
      तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

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  4. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु ।

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  5. Come across this kind of news often in the newspapers. It's tragic that parents ,instead of addressing the issue take recourse to astrology and puja paath.
    Nice story highlighting this shortcoming in our society.

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  6. मार्मिक और सोचने को विवश करती अभिव्यक्ति!!!!

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  7. बहुत बहुत मार्मिक |सत्य घटना जैसी प्रस्तुति | शुभ कामनाएं |

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  8. राम राम सुधा जी, समझ नहीं आ रहा कि इसे कहानी समझूं या उस बेटी की तरह ही और ना जाने कितनी बेटियों की दास्‍तां...या उन मांओं की लापरवाह सोच...बहरहाल आपकी ये रचना इतनी उत्‍कृष्‍ट है कि नि:शब्‍द कर दिया है...बहुत खूब हकीकत को दर्शाती कहानी..

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  9. काश, माँ नेबेटी की बात सूं ली होती। अक्सर ऐसा ही होता है। अंधश्रद्धा के चलते कई माँओ के हाथों ऐसी गलतियां हो रही है। दिल को छूती सुंदर रचना।

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  10. बहुत ही मार्मिक सुंदर लघु कथा

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  11. शादी के समय कहते हैं कि दो घर एक हो गए हैं, लेकिन आज भी यह केवल कहने वाली बात है, बहुत कम ही देखने को मिलता है आज के समय में कोई एक दूसरे को समझते होंगे। जब अपने ही अपनों के नहीं सुनेंगे और दूसरी ओर उसका उपाय ढूंढेंगे तो यही हस्र होना बाकी रह जाता है। समय पर जो न चेता तो फिर कभी वह समय नहीं आता है।
    मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

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  12. जब माँ ही कमजोर होती है तो बेटियों को कौन सशक्त बनाएगा? उसपर ये क्रुर समाज तो फांसी का फंदा है ही।

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  13. बहुत हृदयविदारक कथा है प्रिय सुधा जी |कुण्डली,गृहदोष का रोना लेकर बैठे लोग ये नहीं समझते समस्त ग्रह परिवार हमारे रिश्तों में निहित है |बेटियों के भावी जीवन को कुंडली के अनुसार जोड़ने वाले लोगों को विशेषकर माँओं को ये समझना होगा कि बेटियों का भविष्य सम्मान देने वाले लोगों से जोड़ें ना कि कागज़ी कुंडली के आधार पर | उस पर भी जब बेटी मानसिक या पारिवारिक संकट में हो उसकी बात सुनें |

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  14. बहुत ही मर्मस्पर्शी भावनाओं में रची-बसी मार्मिक कहानी के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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  15. मर्मस्पर्शी! आपकी नई सोच की शेफालिका उवाच को प्रतीक्षा है।

    सादर,
    डॉ विभा नायक

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