आस का वातावरण फिर, इक नया विश्वास लाया
आस का वातावरण फिर,
इक नया विश्वास लाया ।
सो रहे सपनों को उसने,
आज फिर से है जगाया ।
चाँद ज्यों मुस्का के बोला,
चाँदनी भी दूर मुझसे ।
हाँ मैं तन्हा आसमां में,
पर नहीं मजबूर खुद से ।
है अमावश का अंधेरा,
पूर्णिमा में खिलखिलाया ।
आस का वातावरण फिर,
इक नया विश्वास लाया ।
शूल से आगे निकल कर,
शीर्ष पर पाटल है खिलता ।
रात हो कितनी भी काली,
भोर फिर सूरज निकलता ।
राह के तम को मिटाने,
एक जुगनू टिमटिमाया ।
आस का वातावरण फिर,
इक नया विश्वास लाया ।
चाह से ही राह मिलती,
मंजिलें हैं मोड़ पर ।
कोशिशें अनथक करें जो,
संकल्प मन दृढ़ जोड़ कर ।
देख हर्षित हो स्वयं फिर,
साफल्य घुटने टेक आया ।
आस का वातावरण फिर,
इक नया विश्वास लाया ।
टिप्पणियाँ
सस्नेह आभार।
इक नया विश्वास लाया ।
सो रहे सपनों को उसने,
आज फिर से है जगाया ।
बहुत सार्धक रचना प्रिय सुधा जी।आखिर उम्मीद पर ही तो ये दुनिया कायम है।सस्नेह बधाई और शुभकामनाएं ❤❤🌹🌹
निराशा और विपरीत मनोस्थिति से लड़ते मन में नवीन उत्साह का संचार करती रचना के लिए बहुत बधाई सुधा जी।
सस्नेह।
मंजिलें हैं मोड़ पर ।
कोशिशें अनथक करें जो,
संकल्प मन दृढ़ जोड़ कर ।
सकारात्मक विचारों का संचार करती अत्यंत सुन्दर
भावाभिव्यक्ति ।
शूल से आगे निकल कर,
शीर्ष पर पाटल है खिलता ।
रात हो कितनी भी काली,
भोर फिर सूरज निकलता ।
राह के तम को मिटाने,
एक जुगनू टिमटिमाया ।
आस का वातावरण फिर,
इक नया विश्वास लाया । .
आजकल जैसे निराशाओं का दौर चल रहा है ।
समय के दुष्चक्र को दुत्कारती, मनुष्य जीवन में आशा और विश्वास का संचार करती सुंदर रचना ।
बधाई प्रिय सुधा जी ।
सस्नेह आभार ।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है ...