कहाँ गये तुम सूरज दादा ?
कहाँ गये तुम सूरज दादा ?
क्यों ली अबकी छुट्टी ज्यादा ?
ठिठुर रहे हैं हम सर्दी से,
कितना पहनें और लबादा ?
दाँत हमारे किटकिट बजते ।
रोज नहाने से हम डरते ।
खेलकूद सब छोड़-छाड़ हम,
ओढ़ रजाई ठंड से लड़ते ।
क्यों देरी से आते हो तुम ?
साँझ भी जल्दी जाते क्यों तुम ?
अपनी धूप भी आप सेंकते,
दिनभर यूँ सुस्ताते क्यों तुम ?
धूप भी देखो कैसी पीली ।
मरियल सी कुछ ढ़ीली-ढ़ीली ।
उमस कहाँ गुम कर दी तुमने
जलते ज्यों माचिस की तीली ।
शेर बने फिरते गर्मी में ।
सिट्टी-पिट्टी गुम सर्दी में ।
घने कुहासे से डरते क्यों ?
आ जाओ ऊनी वर्दी में !
निकल भी जाओ सूरज दादा ।
जिद्द न करो तुम इतना ज्यादा।
साथ तुम्हारे खेलेंगे हम,
लो करते हैं तुमसे वादा ।
कोहरे को अब दूर भगा दो !
गर्म-गर्म किरणें बिखरा दो !
राहत दो ठिठुरे जीवों को,
आ जाओ सबको गरमा दो !
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२१-०१ -२०२२ ) को
'कैसे भेंट करूँ? '(चर्चा अंक-४३१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सस्नेह आभार।
सादर आभार।
जाड़े और साथ ही कोहरे ने जबरदस्त आतंक मचा रखा है ।
कोमल बाल कविता से मिल ।
बहुत सुंदर सृजन सुधा जी।
जिद्द न करो तुम इतना ज्यादा।
साथ तुम्हारे खेलेंगे हम,
लो करते हैं तुमसे वादा ।
आहाहा. बड़ी प्यारी,सरस मनुहार बाल मन की । मन मोहती कविता के लिए आपको बहुत शुभकामनाएं सखी ।
करते अपनी मनमानी
मनुहार करी कितनी सारी
पर एक न बात उन्होंने मानी ।
आपने कितनी सुंदर बाल कविता लिखी है , पढ़ते हुए लगा कि इस मनुहार में मैं भी शामिल हो गयी हूँ ।।
👌👌👌👌👌👌👌
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु।
आपके यहाँ तो नहीं आ रखे छुट्टी मनाने?
सस्नेह।
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत सुन्दर बाल रचना है ... लाड और मनुहार में लिखी रचना ...
सिट्टी-पिट्टी गुम सर्दी में ।
घने कुहासे से डरते क्यों ?
आ जाओ ऊनी वर्दी में !
वाह !!
वाजिब शिकायत के साथ वाजिब सलाह सूरज दादा को । बहुत सुन्दर बाल कविता ।