वृद्धावस्था
वृद्धावस्था |
सोच में है थकन थोड़ी,
अक्ल भी कुछ मन्द सी।
अनुभव पुराने जीर्ण से,
बुद्धि भी कुछ बन्द सी।
है कमर झुकी - झुकी ,
बुझे - बुझे से हैं नयन।
हस्त कम्पित कर रहे,
आज लाठी का चयन।
है जुबां खामोश अब,
मन कहीं छूटा सा है।
रुग्ण और क्षीण तन,
विश्वास भी टूटा सा है।
पूछने वाले भी अब,
सीख देने आ रहे।
जिंदगी ये गोप्य तेरे,
मन बहुत दुखा रहे।
जन्म से ले ज्ञान पर,
अंत सब बिसराव है।
शून्य से हुआ शुरू,
शून्य ही ठहराव है।।
टिप्पणियाँ
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहतरीन सृजन ।।
सादर आभार।
तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद आपका।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(28-11-21) को वृद्धावस्था" ( चर्चा अंक 4262) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
आंखें नम है सुधाजी और सिसकारियां अंतर में उठ के टूट रही है।🙏🏼
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
शून्य ही ठहराव है।।
–सत्य कथन
सुन्दर रचना
सीख देने आ रहे।
जिंदगी ये गोप्य तेरे,
मन बहुत दुखा रहे।
वृद्धा अवस्था की स्थिति का सुंदर वर्णन आदरणीय ।
मन कहीं छूटा सा है।
रुग्ण और क्षीण तन,
विश्वास भी टूटा सा है।
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शि सृजन
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सादर
जीवन का ये चक्र तो हर किसी को पार करना है ... प्रारम्भ है तो अंत तो होना ही है ...
ये बुढापा एक प्रदाव है ... कष्टकारी है पर इसे पार किये बिना शायद जीवन समझ्पाना भी आसान नहीं ...
संवेदनशील भावपूर्ण रचना ...