तमस राज अपना फैला रहा है
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चित्र साभार pixabay.com से
दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है...
अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है
तमस राज अपना फैला रहा है
अमा के तमस से सहमा सा जुगनू
टिम-टिम चमकने में कतरा रहा है
दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है....।
कितनी अयोध्या जगमग सजी हैं
पर ना कहीं कोई राम आ रहा है
कष्टों के बादल कहर ढ़ा रहे हैं
पर्वत उठाने ना श्याम आ रहा है
दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है।
अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है
तमस राज अपना फैला रहा है.....।
कहीं साँस लेना भी मुश्किल हुआ है
सियासत का कोहरा गहरा रहा है
करेंगे तो अपनी ही मन की सभी
पर ढ़ीला हुकूमत का पहरा रहा है
दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है
अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है
तमस राज अपना फैला रहा है.....।
बने मुफ्तभोगी सत्ता के लोभी
हराकर मनुज को दनुज जी रहा है
निष्कर्म जीवन चुना स्वार्थी मन
पकड़ रोशनी के वो पंख सी रहा है
दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है
अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है
तमस राज अपना फैला रहा है......।
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टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आ.आलोक जी!
हटाएंअभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है
जवाब देंहटाएंतमस राज अपना फैला रहा है
अमा के तमस से सहमा सा जुगनू
टिम-टिम चमकने में कतरा रहा है
दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है....।
गहन भावाभिव्यक्ति। हृदयस्पर्शी सृजन ।
तहेदिल से धन्यवाद मीना जी!
हटाएंसस्नेह आभार।
कटु सत्य को उजागर करती आपकी यह कविता मुझे झकझोर गई सुधा जी। सत्य से ओतप्रोत ऐसी कविताएं करने के लिए भी नैतिक साहस चाहिए जो किसी-किसी में ही होता है। नमन आपकी लेखनी को।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से धन्यवाद आ.जितेन्द्र जी!
हटाएंसादर आभार।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(११-११-२०२१) को
'अंतर्ध्वनि'(चर्चा अंक-४२४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
तहेदिल से धन्यवाद प्रिय अनीता जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंसस्नेह आभार।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मनोज जी!
हटाएंअमा के तमस से सहमा सा जुगनू
जवाब देंहटाएंटिम-टिम चमकने में कतरा रहा है
बहुत ही सुंदर व बेहतरीन रचना
तहेदिल से धन्यवाद मनीषा जी!
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी!
हटाएंयथार्थ पर गहनता से प्रहार है ये रचना बहुत सुंदर सृजन सुधा जी सत्य और सत्य के आस पास।
जवाब देंहटाएंहराकर मनुज को दनुज जी रहा है
निष्कर्म जीवन चुना स्वार्थी मन
पकड़ रोशनी के वो पंख सी रहा है।
सटीक !
अभिनव रचना।
हृदयतल से धन्यवाद कुसुम जी!आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित करती हैं
हटाएंसादर आभार।
बहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंimpressive likha hai
जवाब देंहटाएंजीवन के अल्प उत्सव के बाद वही समय फिर से लौट आता है। क्षणिक उजालों के बाद निर्मोही अंधेरे का राज दीर्घकालीन और प्राय स्थायी सा अनुभव होता है। सार्थक चिन्तन को प्रेरित करतीं भावपूर्ण रचना प्रिय सुधा जी। बस यहीं दुआ है अंधेरे के साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर उजालों की कीर्ति अमर हो।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित एवं अनमोल प्रतिक्रिया द्वारा रचना का मर्म स्पष्ट करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय रेणु जी!
हटाएंकितनी अयोध्या जगमग सजी हैं
जवाब देंहटाएंपर ना कहीं कोई राम आ रहा है
कष्टों के बादल कहर ढ़ा रहे हैं
पर्वत उठाने ना श्याम आ रहा है
दीवाली गयी अब दिये बुझ गये सब
वो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है।
अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं है
तमस राज अपना फैला रहा है.....।👌👌👌❤️❤️🌷🌷
बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंसुंदर सार्थक रचना ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी!
हटाएंसस्नेह आभार।
बहुत ही सुन्दर सृजन 👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.भारती जी!
हटाएंवाह सुधा जी बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद रितु जी!
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