पटाखे से जला हाथ
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इतने सालों बाद भी दीपावली बीतने पर उस छात्र की याद मन को उदास कर देती है ...हर बार मन में ख्याल आता है कि अब वो कैसा होगा....उसके सपने उसे कैसे सालते होंगे... कितना पछताता होगा न वो।
हाँ बात 2003 की है ,विनीत आठवीं कक्षा में नया आया था । उसका परिचय पूछते समय जब मैंने उसे पूछा तुम बड़े होकर पढ़-लिखकर क्या बनोगे...?
तो वह बोला "मैम ! मैं बड़ा होकर आर्मी ज्वाइन करना चाहता हूँ और देश की सेवा करना चाहता हूँ।
बाकी सारे डॉक्टर्स और इंजीनियर्स बनने वाले बच्चों की कक्षा में ये अकेला 'जवान' मुझे ही क्या अन्य सभी टीचर्स को भी बहुत अच्छा लगता था... क्योंकि वह पढ़ने में होशियार और बुद्धिमान तो था ही साथ ही बहुत जिम्मेदार भी था।
लेकिन उसी साल दीपावली की छुट्टियों के बाद जब वह स्कूल आया तो हम सभी उसे देखकर स्तब्ध रह गये।उसकी दायीं आँख और हाथ दीवाली के पटाखों की भेंट चढ़ चुके थे ....
एक बड़ा बम जो जमीन में फेंकने से पहले ही उसके हाथ में फट गया जिससे उसके दायें हाथ की उँगलियाँ जलकर पीछे की तरफ चिपक गयी और एक आँख जलकर ऐसी फूल गयी कि बगैर काले चश्मे के उसे देखकर डर लगने लगा।
मध्यमवर्गीय परिवार से था तो इसके माता-पिता इसकी कोई बड़ी सर्जरी भी नहीं करवा पाये थे।
इतना होशियार और बुद्धिमान बच्चा फिर बायें हाथ से लिखने की प्रेक्टिस में पिछड़ने लगा था।
एक दिन जब मैंने उसके दोस्तों को उसे कहते सुना कि "अरे विनीत ! तू बड़ा होकर विकलांग सर्टिफिकेट बना देना आजकल विकलांगों को नौकरी जल्दी मिल जाती है तो सुनकर मुझे कैसा लगा , कितना दुख हुआ ये बताने के लिए आज भी शब्द नहीं हैं मेरे पास।
मुझे आज भी हर दीपावली पर वह बच्चा याद आता है और साथ ही उसका आर्मी ज्वाइन करने का वह सपना भी।
हर बार दीपावली पर फूटते पटाखों का शोर मुझे अन्दर से भयभीत करता है कि ना जाने किस बच्चे के सपने किस पटाखे के साथ जल रहे हों।
सोचती हूँ त्रेतायुग में जब 14 वर्षों का वनवास पूरा कर श्रीराम अयोध्या वापस लौटे तब अयोध्यावासियों ने खुशी में घी के दिये जलाये थे तभी से दीपावली मनायी जाती है कदाचित तब उन्होने पटाखे तो नहीं फोड़े होंगे।तब कहाँ पटाखे का चलन रहा होगा... है न।
तो फिर ये दीपावली की खुशियों में दीप जलाने के साथ पटाखे छुड़ाने का चलन कब और कहाँ से आया होगा ?
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१२-११-२०२१) को
'झुकती पृथ्वी'(चर्चा अंक-४२४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार।
सादर आभार।
सही कहा ऐसी घटनाओं से असुरक्षा की भावना पैदा होती है मेरे मन में भी हुई इतनी ज्यादा हुई कि मेरे परिवार में कोई भी पटाखे नहीं छुड़ाता...। सब मेरी ही तरह इसे गलत मानते हैं।
सस्नेह आभार।
भी नहीं निकलता। मेरे विचारों से सहमत होने एवं अनमोल प्रतिक्रिया सेउत्साह वर्धन करने के लिए तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
बहुत ही दर्द भरी दास्तान,वो भी किसी बच्चे की । महसूस करके ही मन कांप उठता है आपने तो खुद देखा है । पटाखों से कई तरह की हानियां होती हैं,पर लोग मानते ही नहीं है । हमारे यहां तो दीवाली के बाद से ही धुंध छाई है प्रदूषण की वजह से ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सोचने पर विवश कर जाते हैं काश काश न होता ... सारी मान्यताएं हिला जाते हैं अन्दर तक ...