कैनल में कैद अब झूठा नबाब
प्रदत्त चित्र पर हास्यव्यंग रचना
आँखों में चश्मा मुँह में गुलाब,
हाथ मोबाइल करके आदाब
गले में मोती जड़ा था पट्टा,
चला जो शेरू बनके नबाब
कदम कदम पर यार मिले,
चापलूस दो -चार मिले
मचले मन औ बहके कदम के,
जी हुजूर सरकार मिले
आड़ी तिरछी पोज बनाई,
यो यो वाली फोटो खिंचाई
टेढी-मेढ़ी सी दुम हिलाकर,
उठाये पंजे सैल्फी बनाई
आवारगी की सनक जो थी,
मालिक बुलाये पर भनक न थी।
गुर्रा रहा था वो फुल जोश में,
हंटर पड़ा तब आया होश में
लोटा जमीं पे वो दुम हिलाकर,
सारी मस्ती मन से भुलाकर
चश्मा टूटा और छूटा गुलाब,
कैनल में कैद अब झूठा नबाब।।
टिप्पणियाँ
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार।
के साथ साथ आज के यथार्थ का भी दर्शन करा गई आपकी रचना ।
अच्छी कल्पना शक्ति, सुंदर चित्राभिव्यक्ति
अद्भुत
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
अति सुंदर चित्राभिव्यक्ति ।
हास्य और व्यंग का अपना ही मज़ा है ...
अच्छी रचना है ...