आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए एक और रचना इसी ब्लॉग पर ● बच्चों के मन से
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी मेरी इतनी पुरानी रचना साझा करने हेतु ।
जवाब देंहटाएंबच्चों को प्रेरणा देता शब्द शब्द ।
जवाब देंहटाएंसंस्कारों और देशप्रेम का सुंदर आह्वान।
प्रेरक बाल गीत।
हार्दिक धन्यवाद जवं आभार आ.कुसुम जी !
हटाएंबच्चों को बहुत ही प्रेरक उद्बोधन प्रिय सुधा जी।यदि राष्ट्र के भावी कर्णधार देश हित के लिए प्रयास करें तो ही वे सच्चे भारतीय कहलाने लायक हैं।
जवाब देंहटाएंजी, अत्यंत आभार आपका ।
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