मौसम बदल जाने को है
चित्र साभार photopin.com से
अभी फलित भी ना हुई कि बेल मुरझाने को है
देखते ही देखते , मौसम बदल जाने को है
देर से जागे हैं तो , तत्पर संभालें आपको
है गतिज ये दोपहर फिर साँझ ढ़ल जाने को है ।
चार दिन चौमास में , बादल घुमड़ के चल दिये
दमक उठा अम्बर बदन, समझो शरद आने को है।
सिमट रही नदी भी अब, नालों का साथ ना मिला
सैकत भरे इस तीर का , उफान अब जाने को है ।
बुढिया रही बरसात अब, फूले हैं काँस केश से
दादुर दुबक रहे कहीं, 'खंजन' भी अब आने को है ।
खिल रही कली-कली , पुष्पित सभी प्रसून हैं
पयाम पुष्प पा मधुप, सुर मधुर गाने को है ।
टिप्पणियाँ
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शरद के
स्वागत में वादियों के
दामन
सजने लगे,
बहकी हवाओं ने
हर शय में
नया राग
जगाया है।
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सस्नेह
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दमक उठा अम्बर बदन, समझो शरद आने को है।
बहुत लाजबाब रचना, सुधा दी।
मनभावन मनमोहक।
अप्रतिम।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
आपका भी बहुत बहुत स्वागत है ब्लॉग पर।