नोबची
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"ये क्या है मम्मा ! आजकल आप हमसे भी ज्यादा समय अपने पौधों को देते हो"...? शिकायती लहजे में पलक और पल्लवी ने माँ से सवाल किया।
"हाँ बेटा ! ये पौधे हैं ही इतने प्यारे...अगर तुम भी इन पर जरा सा ध्यान दोगे न , तो मोबाइल टीवी छोड़कर मेरी तरह इन्हीं के साथ समय बिताना पसन्द करोगे, आओ मैं तुम्हें इनसे मिलवाती हूँ"....माँ उनका ध्यान खींचते हुए बोली।
दोनों पास आये तो माँ ने उन्हें गमले में उगे पौधे की तरफ इशारा करते हुए कहा "देखो ! ये है नोबची"
नोबची ! ये कैसा नाम है ?...दोनों ने आँख मुँह सिकोड़ते हुए एक साथ पूछा।
"हाँ ! नोबची, और जानते हो इसे नोबची क्यों कहते है" ?
"क्यों कहते हैं" ? उन्होंने पूछा तो माँ बोली, "बेटा ! क्योंकि ठीक नौ बजे सुबह ये पौधा अपने फूल खिलाता है"।
हैं !!.नौ बजे !!...हमें भी देखना है। (दोनों बड़े आश्चर्यचकित एवं उत्साहित थे) और अगली सुबह समय से पहले ही दोनों बच्चे नोबची पर नजर गड़ाए खड़े हो गये।
बस नौ बजने ही वाले है दीदी !
हाँ पलक ! और देख नोबची भी खिलने लगा है !!!...
नोबची की खिलखिलाहट के साथ अपनी बेटियों के खिले चेहरे देख माँ की खुशी का ठिकाना न रहा ।
उसने मन ही मन संकल्प लिया कि इसी तरह मैं अपनी बच्चियों को प्रकृति से जोड़ने की पूरी कोशिश करुंगी।
पढ़िए , बच्चों की सोच पर आधारित एक और लघु कथा निम्न लिंक पर --
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टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी!
हटाएंबहुत सुन्दर... बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का यह अच्छा तरीका है....
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद नैनवाल जी!
हटाएंवाह,कितनी प्यारी और मासूम बाल कथा,बिल्कुल आपके प्यारे बच्चों की तरह,बहुत शुभकामनाएँ बच्चों और नोबची दोनों के लिए।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी!
हटाएंप्रकृति से जोड़ने के विचार के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार समीर जी!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत सुन्दर..प्रकृति से बच्चों को जोड़ने का बहुत सुन्दर और रोचक तरीका ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मीनाजी!
हटाएंसस्नेह आभार।
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!
हटाएंबहुत सुंदर सुधा जी , बच्चों के कोमल मन को कैसे प्रकृति से जोडे ,कैसे रुचिकर कदम उन्हें ऐसा करने को प्रेरित करते हैं ,ये सब आपने छोटी सी कहानी में कह दिया।
जवाब देंहटाएंअभिनव प्रयोग।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी!
हटाएंबहुत बढ़िया प्रिय सुधा जी। इतना ही आसान है बच्चों को प्रकृति से जोड़ना! एक सरल संकल्प जिसकी पूर्ति कोई मुश्किल नहीं। ये हमारा पुनीत दायित्व है बच्चो के माध्यम से प्रकृति का संरक्षण.! प्रेरक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद एवं आभार रेणु जी!
हटाएंअहा, सुन्दर और रोचक। गुणानुरूप नामकरण।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ. प्रवीण जी!
हटाएंसादर आभार।
सुंदर बाल कथा । प्रकृति के संरक्षण के लिए उत्तम प्रयास पर आधारित लघु कथा सराहनीय है । बच्चों में प्रकृति के लिए प्रेम उत्पन्न करने के लिए स्वयं जुड़ना होगा ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आ.संगीता जी!
हटाएंसादर आभार।
सन्देशप्रद और सुन्दर लघु कथा!!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनुपमा जी!
हटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति। बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का इससे अच्छा और कोई उपाय नहीं है। बधाई आपको। सादर।
जवाब देंहटाएंजी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद जी!
हटाएंबहुत सुंदर। पर्यावरण और प्रकृति से इंसान को जुड़ने का संदेश देती रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी!
हटाएंबहुत ही सहज-सुगम पर संदेशपरक घटना/कहानी .. इसी को कहीं-कहीं लोकभाषा में नौबजिया भी कहते हैं .. शायद ...
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने...बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।
हटाएंप्रिय सुधा जी , उस दिन लिख ना पायी -- हमारे यहाँ हम इस फूल को गुलदुपहरी के नाम से जानते हैं |
जवाब देंहटाएंगुलदुपहरी!सच में दोपहर तक ही खिला दिखता है ये साँझ होते होते मुरझाने लगता है। नोबची, गुलदुपहरी, नौबजिया मैंने भी अभी ही जाना इसको...और उगाने में भी कितना आसान है कहीं
हटाएंसे भी कैसे भी तोड़कर लगा लो जड़ पकड़ लेता है।
बहुत बहुत आभार रेणु जी पुनः आकर इसका नाम बताने हेतु।