और एक साल बीत गया

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प्रदत्त पंक्ति ' और एक साल बीत गया' पर मेरा एक प्रयास  और एक साल बीत गया  दिन मास पल छिन  श्वास तनिक रीत गया  हाँ ! और एक साल बीत गया ! ओस की सी बूँद जैसी उम्र भी टपक पड़ी  अंत से अजान ऐसी बेल ज्यों लटक खड़ी  मन प्रसून पर फिर से आस भ्रमर रीझ गया  और एक साल बीत गया ! साल भर चैन नहीं पाने की होड़ लगी  और, और, और अधिक संचय की दौड़ लगी  भान नहीं पोटली से प्राण तनिक छीज गया और एक साल बीत गया ! जो है सहेज उसे चैन की इक श्वास तो ले जीवन उद्देश्य जान सुख की कुछ आस तो ले    मन जो संतुष्ट किया वो ही जग जीत गया  और एक साल बीत गया ! नववर्ष के अग्रिम शुभकामनाओं के साथ पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर -- ●  नववर्ष मंगलमय हो

बदलती सोच 【2】

guldaudi (chrysanthemum)flower


आज शीला कुछ और सहेलियों के साथ विमला के घर बिन बताए पहुँची उसे सरप्राइज देने... लेकिन दरवाजे पर उसके पति नीलेश को देख  सभी के मुँह लटक गये...।

ओह! नीलेश जी आप! ?...सबके मुँह से एक साथ निकला....

जी ! क्यों... मेरा मतलब ,..नमस्ते... आ..आइए...! आइए न..! आ..आप बाहर क्यों हैं ...नीलेश ने हकलाते हुए कहा।

वो... सॉरी नीलेश जी ! हमें लगा कि आप भी अब ऑफिस जाने लगे होंगे...। लॉकडाउन तो अब खत्म हो गया न...।   तो हम विमला से मिलने आ गये बिन बताए......सोचा सरप्राइज देंगे उसे.......पर कोई नहीं हम अभी चलते हैं फिर कभी आयेंगें... माफ करना आपको डिस्टर्ब किया" हिचकिचाते हुए शीला बोली।

अरे नहीं ! डिस्टर्ब कैसा !!  डिस्टर्ब जैसी कोई बात ही नहीं !..आप सभी ने बहुत अच्छा किया ..आइए न..... दीजिए उसे सरप्राइज!!..वो पीछे गेस्ट रूम की सफाई कर रही है......। आप सभी को देखकर सचमुच बहुत खुश एवं आश्चर्यचकित हो जायेगी। वैसे भी कब से बोर हो रहे हैं सब घरों में कैद होकर...।

(नीलेश उन सब को गेस्ट रूम तक छोड़ आये)

अचानक सभी सहेलियों के देखकर विमला सचमुच चौंक गयी,बड़ी खुशी-खुशी हालचाल पूछते हुए सबको बिठाया....।

तो एक सखी बोली ;  "विमला हमें नहीं पता था कि नीलेश जी घर पर हैं हम बिन बताए आ गये, चल अब मिल लिए न हम सब।  अब हमें चलना चाहिए....हैं न ! और सब उसकी की हाँ में हाँ मिलाकर उठने लगे।

"अरे! ऐसे कैसे.....?.. अब आ गये तो बैठना तो पड़ेगा ही ..चलिये आप सब बैठिये  ! मैं अभी चाय नाश्ता लेकर आती हूँ" ।  कहकर विमला जैसे ही निकलने लगी सखियों ने उसका हाथ पकड़कर उसे बिठा दिया और बोली ; "नहीं नहीं...इसकी कोई जरुरत नहीं , वैसे तो हमें निकलना चाहिए पर तुम जिद्द कर रही हो तो थोड़ी देर रुक जाते हैं और गप्पें मारते है यार ! कोई चाय-वाय नहीं....तुम बैठो हमारे साथ। चाय बनाने चली गयी तो गपशप कैसे होंगी हमारी, हैं न"...?   "हाँ सही बात है"  कहकर सब हँसने लगे।

"और अगर चाय-नाश्ता बना बनाया मिल जाय तो ?   गपशप में कोई व्यवधान भी नहीं होगा , है न... दरवाजे पर चायनाश्ते की ट्रे हाथ में लिए नीलेश ने हँसते हुए मजाकिया लहजे में कहा ।

"अरे! नीलेश जी ! ओह !...आपने क्यों कष्ट किया"?...नीलेश को देखकर सब एक साथ सकुचाते हुए  हिचकिचाकर  बोली।

विमला ने झट से नीलेश के हाथ से ट्रे ली और बोली,  "मैं आ ही रही थी आपने क्यों ? ओह! (अफसोस और हिचक उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था)

उन सबकी मनोस्थिति भाँपकर नीलेश अपनी पत्नी विमला के और करीब आकर बड़े प्यार से बोला; "श्शश.. क्यों...मैं क्यों नहीं ? जब मेरे दोस्त घर पर आते हैं,  तो आप भी इसी तरह लाती हैं न हमारे लिए चाय नाश्ता!.. फिर मैं ले आया तो कष्ट कैसा...?

हाँ ! ऐसा मैंने पहले कभी नहीं किया इस गलती का एहसास हो गया है मुझे....पर वो कहते हैं न जब जागो तभी सवेरा ! (मुस्कुराते हुए)

बस समझो कि मैं भी अभी - अभी जागा हूँ...। अब आप सभी बेफ्रिक होकर आराम से गपशप करते हुए चाय-नाश्ता कीजिए "। 

हाथ में ट्रे लिए विमला मन्त्रमुग्ध सी पति को देखती ही रह गयी...आश्चर्य खुशी और ढ़ेर सारा प्यार उसकी आँखों में साफ झलक रहा था और सभी सखियों की नजरों में नीलेश के लिए सम्मान।



टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया ..... बदलनी ही चाहिए अब सोच ।

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  2. बहुत बढ़िया विषय चुना आपने,धीरे धीरे स्थितियां पहले से बेहतर हो रही हैं,सार्थक कहानी ।

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    1. तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी! सराहनीह प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु।
      सस्नेह आभार।

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  3. बहुत सुन्दर सोच ।अत्यन्त सुन्दर सृजन सुधा जी!

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