मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश...
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से
काँच घर को समन्दर बना रही
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
जब वो आयी तो थोड़ा उदास थी
बहुत प्यारी थी अपने में खास थी
जल्द हिलमिल गयी बदले परिवेश में
हर हालात मन से अपना रही
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हीं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
दाने दाने की जब वो मोहताज है
खुद पे फिर भी उसे इतना नाज है
है विधाता की अनुपम सी कृति वो
मूल्यांकन स्वयं का सिखा रही
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही।
चित्र साभार गूगल से...
टिप्पणियाँ
देखो जीना हमें है सिखा रही।
बहुत बड़ी सीख लिए बहुत सुन्दर रचना ।
मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन के मंच पर साझा करने हेतु।
सस्नेह आभार आपका।
सुन्दर सराहनीय अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
सादर
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
देखो जीना हमें है सिखा रही
है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से
काँच घर को समन्दर बना ,,,,,,,,,,, बहुत सुंदर रचना,
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
सादर आभार।
सादर आभार आपका।
सरल सहज भाव प्रवाह ।
देखो जीना हमें है सिखा रही
है बंधी फिर भी उन्मुक्त सोच से
काँच घर को समन्दर बना रही
जो है,जितना है उसी में जीने की सीख दे रही है। बहुत ही सुंदर भाव लिए बेहतरीन रचना,सादर नमन सुधा जी
सादर आभार।
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
जीवन क्या है ... कैसा है और कैसे जीना चाहिए सब को सिखा जाती है ... एक नन्ही सी जान ...
शांत सरल सौम्य मछली का जीवन ...
सुंदर रचना ....
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मैंने भी स्ट्रीटडॉग्स पर एक कविता लिखी है।एक पढ़ें ।मेरा विश्वास है आपको भावुक कर देगी।पसन्द आये तो फॉलो कमेंट करके उत्साह वर्धन करे
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।