अनपढ़ माँ की सीख
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आज माँ ने उसे फोन पर सखियों से कहते सुना कि मुझे मेरे कॉलेज के लड़कों ने दोस्ती के प्रस्ताव भेजें हैं, समझ नहीं आता किसे हाँ कहूँ और किसे ना...।
तो माँ को उसकी चिन्ता सताने लगी,कि ऐसे तो ये गलत संगति में फंस जायेगी। पर इसे समझाऊँ भी तो कैसे ?..
बहुत सोच विचार कर माँ ने उसे पार्क चलने को कहा। वहाँ बरसाती घास व कंटीली झाड़ देखकर छवि बोली; "माँ! यहाँ तो झाड़ी है, चलो वापस चलते हैं"!
माँ बोली ; "इतनी भी क्या जल्दी है ? जब आये हैं तो थोड़ा घूम लेते हैं न"।
"पर माँ देखो न कँटीली घास"! छवि ने कहा
"छोड़ न बेटा ! देख फूल भी तो हैं" कहते हुए माँ उसे लेकर पार्क में घुस गयी थोड़ा आगे जाकर बाहर निकले तो अपने कपड़ों पर काँटे चुभे देखकर छवि कुढ़़कर बोली "माँ! देखो,कितने सारे काँटे चुभ गये हैं"।
कोई नहीं झाड़ देंगे। देखना कोई फूल भी चिपका होगा ? (माँ ने चुटकी लेते हुए कहा)
छवि(झुंझलाकर) - ओह माँ! फूल क्यों चिपकेंगे?सिर्फ काँटे हैं जो निकल भी नहीं रहे। खींचने पर कपड़े खराब कर रहे हैं । सब आपकी वजह से !....मना किया था न मैंने ! अब देखो !
तब माँ ने बोली; "सही कहा बेटा! फूल नहीं चिपकते , उन्हें तो चुनना पड़ता है। और ये काँटे हैं जो चिपककर छूटते भी नहीं, समय भी खराब करते हैं और कपड़े भी, है न".. (बड़े प्यार से उसकी आँखों में झाँकते हुए फिर बोली) "बेटा! दोस्त भी ऐसे ही होते हैं अच्छे दोस्त सोच समझकर चुनने से मिलते हैं और बुरे इन्हीं काँटों की तरह जबरदस्ती चिपकते हैं।और फिर समय बर्बाद तो करते ही हैं अगर सम्भलें नहीं तो पूरा चरित्र ही खराब कर देते हैं। इसीलिए हमें दोस्ती भी सोच समझ कर करनी चाहिए।
बात छवि की समझ में आ चुकी थी। माँ का मंतव्य और युक्ति देख उसके चेहरे पर मुस्कराहट खिल उठी।
चित्र साभार गूगल से...
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टिप्पणियाँ
व्वाहहहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
सादर..
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.यशोदा जी!
हटाएंबहुत बढ़िया सीख।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आ.ज्योति जी!
हटाएंबहुत सुन्दर रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद, आदरणीय!
हटाएंसादर आभार।
सुन्दर प्रेरक सार्थक सन्देश देती प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद रितु जी!
हटाएंसस्नेह आभार।
वाह!सुधा जी ,क्या बात है !समझाने का तरीका मन को भा गया ।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद शुभा जी!
हटाएंबहुत अच्छी सीख दी माँ ने।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद माथुर जी!
हटाएंसादर आभार।
माँ का बेटी को समझाने का तरीका लाजवाब लगा । अत्यन्त सुन्दर सृजन सुधा जी !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मीना जी!
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (31अगस्त 2020) को 'राब्ता का ज़ाबता कहाँ हुआ निहाँ' (चर्चा अंक 3809) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
हृदयतल से धन्यवाद आ. रविन्द्र जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंसादर आभार।
वाह ! प्रिय सुधा जी, क्या प्रेरक कथा लिखी है। पढ़ी लिखी माँ तो न जाने कितने तर्क देती, कितना मग़ज़ खपाती, पर इसमाँ ने तो कमाल कर दिया। बहुत सहजता से इतनी बड़ी सीख दे दी बिटिया को। शानदार लेखन। 👌👌👌हार्दिक शुभकामनायें आपके लिए 🌷🌷💐💐🌷🌷🌹🌹
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद रेणु जी! सुन्दर सराहनीय एवं अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।
हटाएंसस्नेह आभार।
बहुत सुंदर संदेश, बेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद सखी!
हटाएं"फिर समय बर्बाद तो करते ही हैं अगर सम्भलें नहीं तो पूरा चरित्र ही खराब कर देते हैं। इसीलिए हमें दोस्ती भी सोच समझ कर करनी चाहिए।"
जवाब देंहटाएंआज के समय में बच्चे अगर ये बात समझ गए तो जिंदगी सँवर जाती है वरना पूरी तरह खत्म हो जाती है
बहुत ही सुंदर सीख देती कहानी ,सादर नमस्कार सुधा जी
हृदयतल से धन्यवाद कामिनी जी!आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहवर्धन करती है।
हटाएंसादर आभार।