आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

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  आओ बच्चों ! अबकी बारी  होली अलग मनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें  छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग  सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए  एक और रचना इसी ब्लॉग पर ●  बच्चों के मन से

नवसृजित हो रही सृष्टि....

nature recreating itself


अस्तित्व सृष्टि का आज
यहाँ जब डोल रहा
क्रोधित कोरोना बन
हमसे ये बोल रहा

हो सावधान मानव
मत अत्याचार करो
इस विभत्सता हेतु
ना मुझे लाचार करो
       
         तेरी बाँधी नफरत
         की गठरी खोल रहा
        अस्तित्व सृष्टि का आज
         यहाँ जब डोल रहा


मजबूर हुई मनु
मैं तेरी ही करनी से
तूने लगाव जो छोड़
दिया निज धरनी से
           
             तेरे विध्वंस को आज
              मेरा मन तोल रहा
            अस्तित्व सृष्टि का आज
            यहाँ जब डोल रहा

ठहरो तनिक तुम
अपने में ही रह जाओ
नवसृजित हो रही
सृष्टि बाधा मत लाओ

    बेदम सृष्टि में कोई
    सुधारस घोल रहा
    अस्तित्व सृष्टि का आज
    यहाँ जब डोल रहा
   

                चित्र साभार,पिन्टरेस्ट से

   
             

टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय सतीश जी !
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

      हटाएं
  2. अस्तित्व सृष्टि का आज डोल रहा सत्य
    सामयिक रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. बेदम सृष्टि में कोई
    सुधारस घोल रहा
    अस्तित्व सृष्टि का आज
    यहाँ जब डोल रहा
    यथार्थ का चित्रण। आभार और बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद एवं आभार, आदरणीय विश्वमोहन जी !

      हटाएं
  4. वाह!यथार्थ का सुंदर चित्रण !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ शुभा जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

      हटाएं
  5. यतार्थ का चित्रण करती बहुत सुंदर रचना सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से आभार यशोदा जी मेरी रचना को मंच पर साझा करने हेतु...।

      हटाएं
  7. सामायिक विषय पर सटीक और सार्थक नव गीत।
    बधाई सुधा जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ कुसुम जी! तहेदिल से धन्यवाद आपका।

      हटाएं
  8. इसलिए ही तो प्राकृति ही गुरु अहि ... भगवान् है ... सब कुछ है मानव जाती का आदि और अंत इसी से है ...
    स्वतः अपने को भी मार्ग दिखा रह्जी है प्राकृति, बहुत कुछ सिखा रही है ...
    बहुत ही लाजवाब शब्दों में प्राकृति के महत्त्व को रक्खा है आपने ... उत्तम रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी सराहना पाकर रचना सार्थक हुई नासवा जी!हार्दिक धन्यवाद एवं अत्यंत आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  10. सटीक,आज भी सामायिक है सृजन।
    मनु को चेतावनी देता हुआ ।
    सुंदर सार्थक भाव सुधा जी।
    सस्नेह।

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