कह मुकरी.....प्रथम प्रयास
चित्र सभार गूगल से....
◆ चाह देखकर भाव बढ़ाता
हाथ लगाओ खूब रुलाता
है सखी उसको खुद पर नाज
क्या सखी साजन ?.....
..........ना सखी प्याज ।
◆ बढ़ती भीड़ घटे बेचारा
वही तो हम सबका सहारा
उसके बिन न जीवन मंगल
क्या सखी साजन ?.......
................. ना सखी जंगल ।
◆ जित मैं जाऊँँ उत वो आये
शीतल काया मन हर्षाये
रात्रि समा वह देता बाँध
क्या सखी साजन ?......
..................ना सखी चाँद ।
◆ भोर-साँझ वह मन को भाये
सर्दियों में तन-मन गर्माये
उसके लिए सबकी ये राय
हैं सखी साजन ?...........
...................ना सखी चाय ।
टिप्पणियाँ
जित मैं जाऊं उत वो आये
शीतल काया मन हर्षाये
रात्रि समा वह देता बाँध
क्या सखी साजन ?......
..................ना सखी चाँद ।
ये तो बहुत बहुत अच्छी लगी।
सस्नेह आभार आपका।
सस्नेह आभार आपका...।
नीतू जी, अभिलाषा जी, कुसुम जी, अनुराधा जी एवं अन्य प्रबुद्धजनों के मार्गदर्शन एवं सहयोग से नवांकुर पटल पर सीखने की कोशिश कर रही हूँ......
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।
सादर आभार।
मनमोहक प्यारी रचना
बंद बहुत प्यारे.
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
सब मुकरियां एक से बढ़कर एक।
सादर आभार।
आपको ठीक लगी तो श्रम साध्य हुआ
सस्नेह आभार ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (03-02-2020) को 'सूरज कितना घबराया है' (चर्चा अंक - 3600) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
सस्नेह आभार...।
सादर आभार।
सादर आभार ...।
सर्दियों में तन-मन गर्माये
उसके लिए सबकी ये राय
हैं सखी साजन ?...........
..................ना सखी चाय ।
बहुत खूब.... ,बेहतरीन सृजन ,सादर नमन
ब्लॉग पर आपका स्वागत है...