और एक साल बीत गया

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प्रदत्त पंक्ति ' और एक साल बीत गया' पर मेरा एक प्रयास  और एक साल बीत गया  दिन मास पल छिन  श्वास तनिक रीत गया  हाँ ! और एक साल बीत गया ! ओस की सी बूँद जैसी उम्र भी टपक पड़ी  अंत से अजान ऐसी बेल ज्यों लटक खड़ी  मन प्रसून पर फिर से आस भ्रमर रीझ गया  और एक साल बीत गया ! साल भर चैन नहीं पाने की होड़ लगी  और, और, और अधिक संचय की दौड़ लगी  भान नहीं पोटली से प्राण तनिक छीज गया और एक साल बीत गया ! जो है सहेज उसे चैन की इक श्वास तो ले जीवन उद्देश्य जान सुख की कुछ आस तो ले    मन जो संतुष्ट किया वो ही जग जीत गया  और एक साल बीत गया ! नववर्ष के अग्रिम शुभकामनाओं के साथ पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर -- ●  नववर्ष मंगलमय हो

कह मुकरी.....प्रथम प्रयास


 women in traditional attire
             चित्र सभार गूगल से....

◆ चाह देखकर भाव बढ़ाता
     हाथ लगाओ खूब रुलाता
     है सखी उसको खुद पर नाज
     क्या सखी साजन ?.....
                ..........ना सखी प्याज ।



◆   बढ़ती भीड़ घटे बेचारा
      वही तो हम सबका सहारा
      उसके बिन न जीवन मंगल
     क्या सखी साजन ?.......
       .................  ना सखी जंगल ।


◆   जित मैं जाऊँँ उत वो आये
       शीतल काया मन हर्षाये
       रात्रि समा वह देता बाँध
       क्या सखी साजन ?......
         ..................ना सखी चाँद ।


◆     भोर-साँझ वह मन को  भाये
        सर्दियों  में तन-मन गर्माये
        उसके लिए सबकी ये राय
         हैं सखी साजन ?...........
         ...................ना सखी चाय ।


टिप्पणियाँ

  1. वाह क्या बात अति मनमोहक कहमुकरियाँ... बधाई सुधा जी। सुंदर सृजन।
    जित मैं जाऊं उत वो आये
    शीतल काया मन हर्षाये
    रात्रि समा वह देता बाँध
    क्या सखी साजन ?......
    ..................ना सखी चाँद ।

    ये तो बहुत बहुत अच्छी लगी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद श्वेता जी !
      सस्नेह आभार आपका...।

      हटाएं
  2. मनमोहक और बहुत सुन्दर कहमुकरियां

    जवाब देंहटाएं
  3. कह मुकरी विधा से युक्त आपकी रचनाएँ परिपक्वता की निशानियाँ हैं । मैं तो इस विधा से पूर्णतः अंजान हूँ । आपको अनन्त शुभकामनाएं आदरणीया सुधा देवरानी जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मैं भी अंजान ही हूँ पुरुषोत्तम जी !
      नीतू जी, अभिलाषा जी, कुसुम जी, अनुराधा जी एवं अन्य प्रबुद्धजनों के मार्गदर्शन एवं सहयोग से नवांकुर पटल पर सीखने की कोशिश कर रही हूँ......
      आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर मुकरीया सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर मुकरीया सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 02 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. जी यशोदा जी, हृदयतल से आभार आपका मेरी रचना साझा करने हेतु....

    जवाब देंहटाएं
  8. आह
    मनमोहक प्यारी रचना
    बंद बहुत प्यारे.
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र 

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद रोहिताश जी उत्साहवर्धन हेतु...
      सादर आभार।

      हटाएं
  9. बहुत सुंदर कह मुकरी सुधा जी ।
    सब मुकरियां एक से बढ़कर एक।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद कुसुम जी !
      आपको ठीक लगी तो श्रम साध्य हुआ
      सस्नेह आभार ।

      हटाएं
  10. वाह बेहद खूबसूरत कह मुकरी सखी 🌹

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद अनुराधा जी !
      सस्नेह आभार...।

      हटाएं
  11. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (03-02-2020) को 'सूरज कितना घबराया है' (चर्चा अंक - 3600) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव



    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद रविन्द्र जी चर्चा मंच पर मेरी रचना साझा कर उत्साहवर्धन हेतु...।
      सादर आभार।

      हटाएं
  12. वाह ! कमाल की मुकरियाँ, सभी एक से बढ़कर एक...

    जवाब देंहटाएं
  13. सहृदय धन्यवाद अनीता जी !
    सादर आभार ...।

    जवाब देंहटाएं
  14. भोर-साँझ वह मन को भाये
    सर्दियों में तन-मन गर्माये
    उसके लिए सबकी ये राय
    हैं सखी साजन ?...........
    ..................ना सखी चाय ।


    बहुत खूब.... ,बेहतरीन सृजन ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ कामिनी जी !सहृदय धन्यवाद आपका...।

      हटाएं
  15. उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद आदरणीय विकास जी !
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है...

      हटाएं

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