पौधे---अपनों से
घर लाकर मैंंने गमले सजाये
मन की तन्हाई को दूर कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
हवा जब चली तो ये सरसराये
मीठी सी सरगम ज्यों गुनगनाये
सुवासित सुसज्जित सदन कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
इक रोज मुझको बहुत क्रोध आया
गुस्से में मैंंने इनको बहुत कुछ सुनाया।
न रूठे न टूटे मुझपे, स्वस्यचित्त रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
खुशी में मेरी ये भी खुशियाँँ मनाते
खिला फूल तितली भौंरे सभी को बुलाते
उदासीन मन उल्लासित कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
मुसीबतों में जब मैंने मन उलझाया
मेरे गुलाब ने प्यारा पुष्प तब खिलाया
आशान्वित मन मेरा कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ।
धूल भरी आँधी या तूफान आये
घर के बड़ों सा पहले ये ही टकरायेंं
घर-आँगन सुरक्षित कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
चित्र साभार गूगल से...
सुवासित सुसज्जित सदन कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
इक रोज मुझको बहुत क्रोध आया
गुस्से में मैंंने इनको बहुत कुछ सुनाया।
न रूठे न टूटे मुझपे, स्वस्यचित्त रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
खुशी में मेरी ये भी खुशियाँँ मनाते
खिला फूल तितली भौंरे सभी को बुलाते
उदासीन मन उल्लासित कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
मुसीबतों में जब मैंने मन उलझाया
मेरे गुलाब ने प्यारा पुष्प तब खिलाया
आशान्वित मन मेरा कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ।
धूल भरी आँधी या तूफान आये
घर के बड़ों सा पहले ये ही टकरायेंं
घर-आँगन सुरक्षित कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये ।
चित्र साभार गूगल से...
टिप्पणियाँ
पौधों के संग संग जीवन वास्तव में महकने लगता है
घर आंगन को सुरक्षित कर रहे ये अपनों के जैसे
अपने के जैसे अपने लगे यह .......
मेरे गुलाब ने प्यारा पुष्प तब खिलाया
आशान्वित मन मेरा कर रहे ये
अपनों के जैसे अपने लगे ये........
बहुत सुंदर रचना 👌👌
सादर आभार...
सस्नेह आभार....
सस्नेह आभार....
सस्नेह आभार....।
पुष्प, पौधे तो अब विज्ञानिकों ने भी साबित कर दिया है की प्रेम, उलास और गुस्से को, हाथों के टच को महसूस कर पाते हैं और उसी अनुसार फलते फूलते भी हैं और मुरझा भी जाते हैं ... किसी न किसी रूप में अपनी बात कह जाते हैं ...
भावपूर्ण और मन से लिखी इस रचना के माध्यम से कितना गहरा सन्देश है की प्राकृति से संवाद हो तो जीवन का एक साथी ज्यादा हो जाता है ...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार...
सही कहा पौधों के रूप में जीवन का एक साथी ज्यादा हो जाता है।
सादर आभार...
सादर आभार ....
आपका तहेदिल से शुक्रिया एवं आभार उत्साहवर्धन के लिए...
आशीर्वचन मुझसे डिलीट हो गये काश मैं उन्हेंं दुबारा पा सकती....
आपका आना और मेरी रचना पढना ये भी मेरे लिए कम नहीं है हृदयतल से आभार आपका...
सस्नेह आभार...
सादर आभार....
सादर आभार...
आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है...ये चित्र मेरा नहीं है रेणु जी ये गूगल से लिया है।
सस्नेह आभार....
सादर आभार..
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