सीमा बहुत ही सीधी-सादी लड़की थी,बहुत दूर के गाँव से आती थी स्कूल में पढ़ने..........अकेली वही लड़की थी उस गाँव की...लड़के तो बहुत आते थे वहाँ से.... पर लड़कियों को नहीं पढ़ाते थे वे लोग....
उनके गाँव में तो कोई स्कूल था नहीं, दूर के गाँव भेजकर लड़कियों को पढाना वे ठीक नहीं समझते थे ।
क्योंकि बारहवीं तक के स्कूल में कॉलेज से भी बद्तर माहौल था स्कूल दूर होने के कारण बच्चों को देर से पढाना शुरू करते थे । बारहवीं तक पहुँचते-पहुँचते वे विवाह योग्य हो जाते.........।
लड़कों में अक्सर अनुशासनहीनता ज्यादा रहती थी।कुछ बिगड़ैल लड़के स्कूल में दादागिरी करते,जिनके डर से वहाँ लड़कियों कम ही पढ़ती थी.....
सीमा पढ़ने में बहुत ही होशियार थी सबके खिलाफ जाकर उसकी विधवा माँ उसे पढ़ाने भेजती ढ़ेर सारी सीख के साथ। और सीमा भी माँ की सीख का मान रखने में कोई कसर ना छोड़ती। जंगल के लम्बे रास्ते आते-जाते ढे़र सारी मुसीबतें पार करते हुए सीमा का बारहवीं का आखिरी साल चल रहा था ।
कुछ लड़कियों से सीमा की पक्की दोस्ती हो गयी थी इतने सालों में । पर अब बारहवीं कक्षा के बाद हमेशा के लिए बिछड़ना था इनसे । इसीलिए ये सब एक दूसरे
की यादों को सहेजने के लिए उनसे फोटोग्राफ (तस्वीर) ले रहे थे ।
एक सहेली का फोटो सीमा ने अपनी नोटबुक मेंं रखा था।नोटबुक चैक करवाकर लाते हुए राहुल के हाथ लग गयी वह तस्वीर ।
उन दिनों किसी लड़की की तस्वीर किसी लड़के के पास बहुत बड़ी चर्चा का विषय बन जाया करती थी....सीमा की तो आफत ही आ गयी...उफ! अब कैसे निकालूँ इससे ये तस्वीर............। कहींं सहेली को पता चल गया तो...क्या सोचेगी वो मेरे बारे में उसकी एक फोटो भी न सम्भाल पायी मैं.....। नहीं मुझे कुछ भी करके उससे फोटो वापस लेनी होगी........।
राहुल के पास जाकर बोली;...... मेरी सहेली का फोटो जो तुमने मेरी नोटबुक से लिया उसे मुझे दे दो प्लीज....
अच्छा ! तुम्हें दे दूँ ?...बदले में क्या दोगी तुम मुझे.....? राहुल बोला, तो सीमा ने कहा; "क्या चाहिए तुम्हें ! किसी विषय का काम पूरा न हो तो मैं कर दुंगी या मेरी नोटबुक चाहिए तो दे देती हूँ, पर राहुल प्लीज वह तस्वीर मुझे दे दो"।
ए......! मुझे तेरी नोटबुक वगैरह नहीं चाहिए... इस फोटो के बदले अपनी फोटो देनी है तो बात कर,वरना....(कुटिलता से भौंहों को उचकाते हुए) बोल ! देगी अपनी फोटो ...? बोल न !.......
सीमा असमंजस में पड़ गयी सोचने लगी अपनी फोटो क्यूँ दूँ इसे.........फिर भी सहेली का फोटो लेने के चक्कर में कह दिया, हाँ ! दे दुंगी, अब फोटो दो मुझे....।
राहूल बोला; "तो फिर एक हाथ दे एक हाथ ले....ले पकड़ अपनी सहेली की फोटो......और ला दे अपनी फोटो !......।
झट से फोटो उसके हाथ से लेते हुए सीमा बोली ; "पर मेरी फोटो तो आज मेरे पास नहीं है, पर मैं कल ले आउंगी पक्का" !!!........।
ऐ......! झूठ मत बोल !! होगी तेरे पास जरूर.......दे जल्दी अपनी फोटो...!!! नखरे मत दिखा मुझे !!!! (राहुल चिढ़ते हुए बोला) .......
सीमा ने विश्वास दिलाते हुए कहा ; सच्ची में आज नहीं है मेरे पास......कल पक्का ले आउंगी...।
ऐ......! खा कसम ! कल पक्का लायेगी, राहुल उंगली दिखाते हुए बोला...तो सीमा ने भी अपनी उंगलियों से गले को छू्ते हुए बोल ही दिया कसम से !कल जरूर ले आउंगी.....।
(कह तो दिया पर सारे रास्ते इसी उधेड़बुन में रही कैसे टालूं इसे...अपनी फोटो इसे दूंगी तो भूचाल ही आ जायेगा....उफ ! अब क्या करूँ? छुट्टी मार लेती हूँ एक दो दिन की .....पर घर में क्या कहूंगी ? ना ना ....कुछ और ही करना होगा... माँ से पूछूँ ? नहीं यार माँ नहीं समझ पायेगी......माँ से कहना भी ठीक नहीं होगा...खुद ही सोचना होगा मुझे....भगवान जी साथ देना हाँ मेरा!
(आसमान में ताकते हुए हाथ जोड़कर सीमा ने मन्नत माँगी)....।
अगली सुबह राहुल तो अपनी मित्र मंडली के साथ रास्ते में खड़ा था उस के इन्तजार में....।
उसे देखते ही सीमा अन्दर से तो डर सी गयी पर झट से खुद को सम्भालते हुए और भी संजीदा होकर सामने से निकलने लगी तो राहुल बड़े ही छिछोरेपन से उसे रोकते हुए बोला ; ए...! फोटो कहाँ है ?.......ला दे जल्दी !
सीमा चुप खड़ी होकर उसकी तरफ देखने लगी तो वह बोला; देखती क्या है कसम खायी है तूने......अब मुकर मत जाना...ला दे !!!.
ओह ! फोटो ! अब इसमेंं क्या मुकरना?..वो तो मैने लानी ही है,जब कसम खायी है तो लानी तो है ही...कहा है न "कल पक्का लाउंगी कसम से"....सीमा ने फिर उसी तरह विश्वास दिलाते हुए सादगी से कहा तो उसके दोस्तों ने कहा;चल छोड़ यार!आज भूल गयी होगी...कह रही है तो कल ले ही आयेगी......
अगली सुबह भी यही हुआ सीमा यही कहते हुए आगे बढ़ गयी परन्तु आज उसकी सहेलियां भी उसके साथ थी उन सबको जब पूरी बात पता चली तो उन्हें सीमा की फिक्र होने लगी बोली; क्या जरूरत थी उसके मुंह लगने की, कसम क्यों ली तूने.....? अब क्या करेगी......? कब तक ऐसे चला पायेगी उसे.....? तू जानती तो है न इन लड़को को..... अब क्या होगा...... चल और लड़कियों को इकट्ठा करते हैं तब सब मिलकर लड़ेंगे इनसे...।
सीमा जानती थी कोई भी लड़की नहीं लड़ेगी।
ऐसे लड़को से पंगा लेकर कौन खुद को मुसीबत में डालेगा...
वह बोली बस कल ही सब खत्म कर दूंगी चिन्ता मत करो..... सब ठीक हो जायेगा ।
तो तू देगी इसे अपनी फोटो ?...... दिमाग तो ठीक है न तेरा ? क्या करेगी अब?...... उसकी सहेलियां उसे घुड़कने लगी।
अगली सुबह स्कूल पहुँचते ही राहुल दोस्तोंं के साथ वहीं खड़ा मिला, बोला अब आज भी मना मत कर देना.... चुपचाप दे दे अपनी फोटो....! बस गुस्सा मत दिलाना मुझे, वरना...
तभी सीमा ने बीच में ही उसे रोकते हुए सादगी कहा; मैं क्यूँ मना करूंगी भला ?...आखिर कसम खायी है मैंने...तुम तो जानते हो मैं कभी झूठी कसम नहीं लेती......पर मैं क्या करूं ? रोज फोटो रखती हूँ अपने पास कि कल तुम्हें देनी है पर हर सुबह आज बन जाती है और मैंने कसम खाकर कहा है कि कल दूंगी फिर आज देकर कसम थोड़े न तोड़नी है ...है न...जब कल आयेगा पक्का दे दूंगी, "कसम से"(कहकर सीमा धीरे-धीरे आगे बढ़ गयी)......।
राहुल और उसके दोस्त हक्के-बक्के से एक दूसरे का मुंह ताकने लगे.......। एक बोला अरे! इसने तो हम सबको बेवकूफ बना दिया....(मुंह बनाते हुए) कल दूंगी...कसम से...और कल तो आता ही नहीं....भई राहुल इसे तो छोड़ेंगे नहीं.... बड़ी आई सीधी-सच्ची लड़की....। पर राहुल एकदम शान्त स्वर में बोला; चलो कल देखते हैं...।
इधर सीमा की सहेलियां भी झिड़कने लगी उसे...तुझे क्या लगता है वो चुप बैठेगा... पता नहीं अब वो सब क्या करेंगे... सीमा शान्त स्वर में बोली, देखते हैं....
अगले दिन सीमा का विज्ञान का प्रेक्टिकल था...वह प्रयोगशाला में जा रही थी , उसकी कक्षा की कुछ और लड़कियां और उसकी सहेलियां भी उसके साथ थी,तभी राहुल को अपनी तरफ आते हुए देख कर ये सभी वहीं खड़ी हो गयी.....एक अज्ञात सा भय था सबके मन में....।
राहुल सीमा के पास आया हाथ आगे बढ़ाकर मुस्कराते हुए बोला ; ऑल दि बैस्ट सीमा! गुड लक... राहुल से ऐसे अप्रत्याशित से शब्द सुनकर सीमा चुप खड़ी की खड़ी रह गयी...बिना हाथ मिलाये ही राहुल आगे बढ़ गया ...सीमा उसे जाते हुए देखकर सोचने लगी अरे मुझे भी तो उसे विश करना था,प्रेक्टिकल तो उसका भी है...... तभी राहुल ने पीछे मुड़कर देखा सीमा ने बिना कुछ बोले अपना अगूंठा दिखाते हुए विश किया उसने भी हाथ हिला दिया....बाकी सभी लड़कियां सीमा की समझदारी और बुद्धिमत्ता का लोहा मानने लगी... वे भी समझ चुकी थी कि हर जंग लड़कर ही नहीं जीती जाती।
बहुत सुंदर कहानी सुधा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी
हटाएंसादर आभार...
बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार, पम्मी जी !
हटाएंअच्छी कहानी ...
जवाब देंहटाएंदिमाग़ लगाया सीमा ने और न सिर्फ़ अपना कार्य पूरा किया नया मार्ग BBI खोला लड़कियों के लिए की सोचने समझने से काम चलता बाई न की घबराने से ... अपने पर भरोसा ज़रूरी है ...
सारगर्भित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद, नासवा जी !
हटाएंसादर आभार...
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइतनी कठीन समस्या का इतना आसान उपाय? वा...व्व... सुधा दी! मन तो कर रहा था कि टिप्पणी भी कल ही कर दूंगी...कसम से...लेकिन फ़िर सोचा अरे मैं ने थोड़े ही कसम खाई हैं! मेरी सुधा दी ने इतनी अच्छी कहानी लिखी हैं तो टिप्पणी भी तो आज ही होनी चाहिए, हैं न?
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद, ज्योति जी !
हटाएंकहानी आपको अच्छी लगी तो लिखना सार्थक हुआ...आपकी सराहना से उत्साह द्विगुणित हुआ इसके लिए तहेदिल से आभार ....शुक्रिया...।
बेहद खूबसूरत कहानी सुधा जी !
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी !
हटाएंसदगी- समझदारी से भरा और सीख देने वाली कहानी ,बहुत सुंदर ,सादर स्नेह सुधा जी
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ कामिनी जी!उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंसीख देने वाली कहानी सुधा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद, संजय जी !
हटाएंबहुत अच्छी कहानी है प्रिय सुधा जी | लडकियाँ साहस और बुद्धि से काम लें तो हर समस्या जरुर हल होती है | सस्नेह |
जवाब देंहटाएंजी रेणु जी आपका अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रोत्साहन हेतु...।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 23 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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