भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

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सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी ।  बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया  

सुख-दुख के भंवरजाल से माँ बचा लो....



Indian Goddess(Mata)


जाने क्या मुझसे खता हो गयी ?
यूँ लग रहा माँ खफा हो गई...
माँ की कृपा बिन जीवन में मेरी
देखो तो क्या दुर्दशा हो गयी......

माँ! माफ कर दो, अब मान जाओ
इक बार मुझ पर कृपा तो बनाओ
कृपा बिन तो मेरी उजड़ी सी दुनिया
माँ ! बर्बाद होने से मुझको बचाओ.....

माँ! तेरे आँचल के साया तले तो
चिलमिलाती लू भी मुझे छू न पायी
तेरी ओट रहकर तो तूफान से भी,
निडर हो के माँ मैंने नजरें मिलाई.....

तेरे साथ बिन मेरा,  मन डर रहा माँ !
तन्हा सा जीवन, भय लग रहा माँ !
दिव्य ज्योति से मन के अंधेरे मिटा दो,
शरण में हूँ माँ मैं ,चरण में जगह दो......

ना मैं जोग जानूँ न ही तप मैं जानूँ
नियम भी न जानूँ, न संयम मैं जानूँ
पाप-पुण्य हैं क्या, धर्म-कर्म कैसे ?
सुख -दुख के भंवरजाल से माँ बचा लो....

गुमराह हूँ मैंं, माँ सही राह ला दो,
भंवर में है नैया, पार माँ लगा दो...
तुम बिन नहीं मेरा,कोई सहारा माँ
मूरख हूँ, अवगुण मेरे तुम भुला दो...

खता माफ कर दो,माँ मान जाओ,
विश्वास भक्ति का, मेरे मन में जगाओ....
भंवर में है नैया, पार माँ लगा लो...
सुख-दुख के भंवरजाल से माँ बचा लो...


                        चित्र: साभार गूगल से...

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