रविवार, 23 जुलाई 2017

"एक सफलता ऐसी भी"


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मिठाई का डिब्बा मेरी तरफ बढाते हुए वह मुस्कुरा कर बोली  "नमस्ते मैडम जी !मुँह मीठा कीजिए" मैं मिठाई उठाते हुए उसकी तरफ देखकर सोचने लगी ये आवाज तो मंदिरा की है परन्तु चेहरा ! नहीं नहीं वह तो अपना मुंह दुपट्टे से छिपा कर रखती है । 
नहीं पहचाना मैडम जी !   मैं मंदिरा 
मंदिरा तुम ! मैने आश्चर्य से पूछा, यकीनन मैं उसे नहीं पहचान पायी ,पहचानती भी कैसे , मंदिरा तो अपना चेहरा छिपाकर रखती है । न रखे तो करे क्या बेचारी,पल्लू सर से हटते ही सारे बच्चे चिल्ला उठते हैं, भूत!...भूत!!......फिर कहते,"आण्टी !आपका चेहरा कितना डरावना है" !!!

उसका होंठ कटा हुआ था,  जन्म से !  इसीलिए तो हमेशा मुँह दुपट्टे से ढ़ककर रखती है वह। पर आज तो होंठ बिल्कुल ठीक लग रहा था।  ना ही उसने मुँह छिपाया था औऱ न ही इसकी जरूरत थी ।

मैने मिठाई उठाते हुए उसके मुँह की तरफ इशारा करते हुए पूछा कैसे ? और सुना है तुमने काम भी छोड़ दिया ..?
वह मुस्कुराते हुए बोली ; "अभी आप मुँह मीठा कीजिये मैडम जी !  बताती हूँ ।   आप सबको बताने ही तो आयी हूँ ,नहीं तो सब सोचते होंगे मंदिरा चुपचाप कहाँ चली गयी ? इसलिये ही मैं आई"।

बाद में  उसने हमें बताया कि उसका बेटा army मेंं भर्ती हो गया है। "बड़े होनहार हैंं मेरे दोनो बेटे।
बेटे ने मिलिट्री अस्पताल में मेरे मुँह की सर्जरी करवाई।और मुझे काम छोड़ने को कहा है।  मेरा छोटा बेटा इंजीनियर बनना चाहता है। बड़े बेटे ने कहा है खर्चे की चिन्ता नहीं करना , बस मन लगाके पढ़ाई कर और बन जा इंजीनियर ।
अब हमने झोपड़ पट्टी भी छोड़ दी, चौल में किराए का घर लिया है ।वहाँ अच्छा माहौल नहींं था न पढ़ने  के लिए।  ऊपर वाले ने साथ दिया मैडम जी ।
बड़ी कृपा रही उसकी"। कहते हुये मंदिरा के चेहरे पर संतोष और गर्व के भाव थे ।

उसे सुनते हुये मुझे ऐसा लग रहा था मानो मै दुनिया की सबसे कामयाब औरत से बात कर रही हूँ ।
उसने बताया कि कैसे उसने अपने बच्चों को पढ़ाया ।कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा उसे जीवन में 
कटे होठों के कारण उसे क्या क्या सहना पड़ा।
तीन बहनोंं में सबसे छोटी थी मंदिरा । दो बड़ी बहनों का रिश्ता अच्छे जमीन -जायदाद वाले घर में हुआ, मंदिरा के इस नुक्स के कारण कोई अच्छा खानदानी रिश्ता उसके लिए नहीं आया ।
तब बड़ी मुश्किल से इस मेहनत -मजदूरी करने वाले शराबी के हाथ उसे सौंप दिया गया । और उसका जीवन बद से बदतर हो गया.....

उच्च आकांक्षी मंदिरा ने हार नहीं मानी । उसने मन ही मन ठान लिया कि अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर वह अपनी स्थिति में सुधार करेगी । 
बच्चों की पढ़ाई का खर्चा जब शराबी पियक्कड़ पति की कमाई से न हो पाया तो उसने खुद काम करना शुरू किया ।  लोगोंं के घर-घर जाकर बर्तन मांजे ।
झाड़ू-पोछा किया.... जो पैसा मिला उसे स्कूल फीस के लिए जमा करने लगी ।  शराबी पति ने वो पैसे उससे छीन लिए उसे मानसिक, शारीरिक प्रताड़नाएं तक सहनी पड़ी । फिर उसने अपने कमाये पैसे अपनी मालकिन के पास ही छोड़े और जरुरत पड़ने पर ही लिए ।  उसके पति को  जब उसके पास पैसे न मिले तो उसने उसे तरह-तरह की यातनाएं दी । 
उसके पति के लिए बच्चों की पढ़ाई वगैरह का कोई महत्व नहीं था ।

झोपड़ पट्टी के बाकी बच्चे भी तो  स्कूल नहीं जाते थे ।सभी बच्चे या तो भीख माँगते या कोई काम करते, इसलिए भी उसके पति को और गुस्सा आता था उस पर वह चाहता था कि उसके बच्चे भी तमाम बच्चों की तरह उसका हाथ बँटायें।

ऐसे माहौल में बच्चों का मन पढ़ने-लिखने मेंं लगाना भी उसके लिए चुनौती पूर्ण था ।
वह अपने बच्चों को प्रेरणादायक कहानियाँ सुनाती ।उन्हें वहाँ ले जाती जहाँ वह काम पर जाती।
बड़े लोगों के रहन-सहन और ऐशो-आराम की तरफ उनका ध्यान आकर्षित करती ।

अंततः उसकी मेहनत रंग लायी ।ज्यो -ज्यों बच्चे बढ़ने लगे उनका मन स्वतः ही पढ़ने में लगने लगा ।वे पढ़ाई का मतलब समझ गये । नतीजा सबके सामने है। 
आज मंदिरा को सब बधाई दे रहे हैं । भूत कहकर चिल्लाने वाले बच्चे भी मंदिरा आण्टी को घूर-घूर कर आश्चर्य से देख रहे थे ।  पिछले दो सालों से मंदिरा इस स्कूल में काम कर रही थी । वह अपना काम बहुत ही अच्छी तरह बड़े ध्यान से करती आई । कभी किसी को कोई शिकायत का अवसर नहीं दिया उसने ।

हम स्वयं प्रेरित होने या छोटों को प्रेरणा देने के लिए बहुत बड़ी -बड़ी कामयाब हस्तियांँ चुनते हैंं । बड़े-बड़े सफल लोगों का नाम लेते हैंं। 
हमारे आस-पास ही बहुत से ऐसे लोग रहते हैं ,जो विषम परिस्थितियों के बावजूद कठिन परिश्रम से अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं । मेरी नजर में यह भी बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण सफलता है ।और ऐसे लोग भी किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति से कम नहीं हैं ।

आशा है कि झोपड़ पट्टी के बाकी लोग भी अपने बच्चों को शिक्षित करना चाहेंगे ।मंदिरा की तरह अपने बच्चों के सुखद भविष्य का प्रयास जरूर करेंगे ।


                  

24 टिप्‍पणियां:

उषा किरण ने कहा…

मुश नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए…..बहुत प्रेरणादायी पोस्ट है.

yashoda Agrawal ने कहा…

व्वाहहहहह..
हिम्मत है तो सब संभव
सादर..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मुझे तो ये कहानी बहुत प्रेरक लगी । सुधा जी बधाई के साथ शुभकामनाएँ

Sweta sinha ने कहा…

संघर्षों के बाद सुख का मीठा स्वाद प्रेरणादायक है।
बहुत अच्छी कहानी प्रिय सुधा जी आपकी रचनाओं में निहित संदेश लोककल्याणकारी होते हैं सदैव।

सस्नेह।

Kamini Sinha ने कहा…

प्रेरणादायी कहानी। सुधा जी मैं भी एक ऐसी शख्सियत को जानती हूँ जिसे जीतते देखा है मैंने। मैंने उनकी चरित्र को लिखा भी है
"कहानी सोना की " ऐसे लोग ही समाज को प्रेरणा देते है और उनकी कहानियां हम ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचानी भी चाहिए। सादर नमन आपको

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ऊर्जान्वित करती पोस्ट। सच में हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती है।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.उषा किरण जी
सादर आभार।।

Sudha Devrani ने कहा…

जी! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

आपका तहेदिल से धन्यवाद आ. संगीता जी!मेरी इतनी पुरानी कहानी को मंच पर साझा करने एवं अपने अनमोल आशीर्वचनों से मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद श्वेता जी!आपकी अनमोल प्रतिक्रिया मेरा उत्साह द्विगुणित कर देती है।
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

जी कामिनी जी! सही कहा आपने ऐसे लोग समाज की प्रेरणा होते हैं...
आपको कहानी प्रेरणादायी लगी मेरा श्रम साध्य हुआ...तहेदिल से धन्यवाद आपका उत्साहवर्धन करने हेतु।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ. प्रवीण पाण्डेय जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
सादर आभार।

रेणु ने कहा…

प्रिय सुधा जी, मंदिरा के माध्यम से एक सबला की जीवंत कथा बयान की है आपने। मां के रूप में नारी सब से जीवट रूप में होती है। उसके साथ जो कुछ भी हो पर बच्चों की बेहतरी के लिए जान लगा देती है। सुंदर कथा जो मन को छू गई। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

Sudha Devrani ने कहा…

सराहना सम्पन्न,सारगर्भित प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से धन्यवाद सखी!
सस्नेह आभार।

वाणी गीत ने कहा…

प्रेरक कहानी.
जीवन स्तर ऊँचा करने के ईमानदारी से किये प्रयास फलीभूत हुए.

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.वाणी गीत जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी, मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।

कविता रावत ने कहा…

हमारे आस-पास ही बहुत से ऐसे लोग रहते हैं ,जो विषम परिस्थितियों के बावजूद कठिन परिश्रम से अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं । मेरी नजर में यह भी बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण सफलता है ।और ऐसे लोग भी किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति से कम नहीं हैं ।

आशा है कि झोपड़ पट्टी के बाकी लोग भी अपने बच्चों को शिक्षित करना चाहेंगे ।मंदिरा की तरह अपने बच्चों के सुखद भविष्य का प्रयास जरूर करेंगे ।
बिल्‍कुल ऐसी प्रेरणा सबको लेनी चाहिए

मन की वीणा ने कहा…

कामयाबी के लिए दृढ़ मनोबल जरूरी है जो था मंदिरा के पास और उसने अपने और अपने बच्चों का जीवन संवार लिया।
सरल सहज प्रेरक कथा।

Sudha Devrani ने कहा…

जी कविता जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, कुसुम जी ! हृदयतल से धन्यवाद आपका ।

रेणु ने कहा…

'क्षउसे सुनते हुये मुझे ऐसा लग रहा था मानो मै दुनिया की सबसे कामयाब औरत से बात कर रही हूँ ।""
सच में जब मन्दिरा जैसी माँ सफल होती है,तभी माना जाता जा सकता है कि नारी सशक्त हो रही हैं।एक प्रेरक संदेश देती रचना एक बार फिर से पढकर अच्छा लगा प्रिय सुधा जी।

Sudha Devrani ने कहा…

आपके स्नेह की अभिभूत हूँ रेणु जी! अत्यंत आभार आपका ।

हो सके तो समभाव रहें

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