रिमझिम रिमझिम बरखा आई

चित्र
         चौपाई छंद रिमझिम रिमझिम बरखा आई । धरती पर हरियाली छायी ।। आतप से अब राहत पायी । पुलकित हो धरती मुस्काई ।। खेतों में फसलें लहराती । पावस सबके मन को भाती ।। भक्ति भाव में सब नर नारी । पूजें शिव शंकर त्रिपुरारी ।। सावन में शिव वंदन करते । भोले कष्ट सभी के हरते ।। बिल्वपत्र घृत दूध चढ़ाते । दान भक्ति से पुण्य कमाते ।। काँवड़ ले काँवड़िये जाते । गंंगाजल सावन में लाते ।। बम बम भोले का जयकारा । अंतस में करता उजियारा ।। नारी सज धज तीज मनाती । कजरी लोकगीत हैं गाती ।। धरती ओढ़े चूनर धानी । सावन रिमझिम बरसे पानी ।। हार्दिक अभिनंदन आपका🙏🙏 पढिए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर ● पावस में इस बार

"मन और लेखनी"



writing on empty notebook

लिखने का मन है,
लिखती नहीं लेखनी,
लिखना मन चाहता,
कोई जीवनी कहानी ।
शब्द आते नहीं, मन
बोझिल है दुःखी लेखनी ।
लिखने का मन है,
लिखती नहीं लेखनी ।
मन मझधार में है ,
लेखनी पार जाना चाहती,
मन में अपार गम हैं,
लेखनी सब भुलाना चाहती ।
सारे दुखों  को भूल
अन्त सुखी बनाना चाहती,
मन मझधार में है,
लेखनी पार जाना चाहती ।

चन्द लेख बन्द रह गये,
यूँ  ही  किताबों  में ।
जैसे कुछ राज छुपे हों ,
जीवन की यादों में,
वक्त बेवक्त उफनती ,
लहरेंं 'मन-सागर' में,
देखूँ ! कब तक सम्भलती
हैं, ये यादें जीवन में।?

लेखनी समझे उलझन,
सम्भल के लिख भी पाये।
वो लेख ही क्या लिखना
जो 'सुलझी-सीख' न दे पाये।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है...
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. शब्द आते नहीं, मन
    बोझिल है दुःखी लेखनी ।
    लिखने का मन है,
    लिखती नहीं लेखनी ।
    मन मझधार में है ,
    लेखनी पार जाना चाहती,

    इन दिनों मेरी लेखनी की भी यही दशा है।
    कभी कभी शब्द को से जाते हैं, बहुत ही सुन्दर सृजन सुधा जी 🙏

    जवाब देंहटाएं

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