सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

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  किसको कैसे बोलें बोलों, क्याअपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब. तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से ,  करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते  साफ-साफ इनकार बोले अब न उठायेंगे  तेरे पुण्यों का भार तन्हाई भी ताना मारे. कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने  भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी,  रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली  अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे, सब सह के तुम  कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती,  दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ ,  गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों,  पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से,  इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।।

"माँ"



mother playing with a baby on a ground (happy mothers day)

माँ इतनी आशीष दें !
कर सके कोई अर्पण तुम्हें...
प्रेम से तुमने सींचा हमें
बढ सकें यूँ कि छाँव दें तुम्हें...


तेरे ख्वाबों को आबाद कर
मंजिलों तक पहुँच पायेंं हम
सपने बिखरे न तेरे कोई
काम इतना तो कर जाएंं हम

तेरे आँचल की साया तले
हम बढें तपतपी राह में...
ना डरें मुश्किलों से कभी
ना गलत राह अपनायें हम

तेरा आशीष मिलता रहे
बस इतना सुधर जायें हम
हाथ सर में रखे माँ सदा
चरणों में जगह पायें हम ।






चित्र :-गूगल से...साभार

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-09-2019) को " इक मुठ्ठी उजाला "(चर्चा अंक- 3465) पर भी होगी।


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी! आभारी हूँ आपके सहयोग के लिए...

      हटाएं
  2. माँ का आशीष हमेशा रहे
    प्रभु ! इतना हमें "वर" दे...
    माँ से ही तो है संसार ये..
    माँ के चरणों में हम बने रहें...
    बहुत सुन्दर सृजन सुधा जी ... मांँ को समर्पित लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं

  3. माँ के ख्वाबों को आबाद कर
    मंजिलों तक पहुँच पायेंं हम
    सपने बिखरे न माँ के कोई
    काम इतना तो कर जाएंं हम।
    वाह सुधा जी मां पर इतनी मन को छू ने वाली रचना आपकी मन मोह गई ।
    उत्कृष्ट सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  4. पृथ्वी-सी धीर-गंभीर ममतामयी माँ के आँचल में भरा होता है तीनों लोकों का प्यार.
    एक हृदयस्पर्शी रचना जो पाठक को अधूरी-सी लग सकती है क्योंकि आपने इस अभिव्यक्ति को न्यूनतम शब्दों में क़रीने से समेट दिया है.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    लिखते रहिए.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी रचना पर अपने भाव स्पष्ट करने के लिए.......
    जी सचमुच रचना छोटी सी है...।
    सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -8 -2020 ) को "एक दिन हम बेटियों के नाम" (चर्चा अंक-3784) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, कामिनी जी चर्चा मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु।

      हटाएं
  7. तेरा आशीष मिलता रहे
    बस इतना सुधर जायें हम
    हाथ सर में रखे माँ सदा
    चरणों में जगह पायें हम....
    बेहतरीन रचना सखी 👌

    जवाब देंहटाएं

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