आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

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  आओ बच्चों ! अबकी बारी  होली अलग मनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें  छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग  सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए  एक और रचना इसी ब्लॉग पर ●  बच्चों के मन से

"माँ"



mother playing with a baby on a ground (happy mothers day)

माँ इतनी आशीष दें !
कर सके कोई अर्पण तुम्हें...
प्रेम से तुमने सींचा हमें
बढ सकें यूँ कि छाँव दें तुम्हें...


तेरे ख्वाबों को आबाद कर
मंजिलों तक पहुँच पायेंं हम
सपने बिखरे न तेरे कोई
काम इतना तो कर जाएंं हम

तेरे आँचल की साया तले
हम बढें तपतपी राह में...
ना डरें मुश्किलों से कभी
ना गलत राह अपनायें हम

तेरा आशीष मिलता रहे
बस इतना सुधर जायें हम
हाथ सर में रखे माँ सदा
चरणों में जगह पायें हम ।






चित्र :-गूगल से...साभार

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-09-2019) को " इक मुठ्ठी उजाला "(चर्चा अंक- 3465) पर भी होगी।


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी! आभारी हूँ आपके सहयोग के लिए...

      हटाएं
  2. माँ का आशीष हमेशा रहे
    प्रभु ! इतना हमें "वर" दे...
    माँ से ही तो है संसार ये..
    माँ के चरणों में हम बने रहें...
    बहुत सुन्दर सृजन सुधा जी ... मांँ को समर्पित लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं

  3. माँ के ख्वाबों को आबाद कर
    मंजिलों तक पहुँच पायेंं हम
    सपने बिखरे न माँ के कोई
    काम इतना तो कर जाएंं हम।
    वाह सुधा जी मां पर इतनी मन को छू ने वाली रचना आपकी मन मोह गई ।
    उत्कृष्ट सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  4. पृथ्वी-सी धीर-गंभीर ममतामयी माँ के आँचल में भरा होता है तीनों लोकों का प्यार.
    एक हृदयस्पर्शी रचना जो पाठक को अधूरी-सी लग सकती है क्योंकि आपने इस अभिव्यक्ति को न्यूनतम शब्दों में क़रीने से समेट दिया है.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    लिखते रहिए.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी रचना पर अपने भाव स्पष्ट करने के लिए.......
    जी सचमुच रचना छोटी सी है...।
    सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -8 -2020 ) को "एक दिन हम बेटियों के नाम" (चर्चा अंक-3784) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, कामिनी जी चर्चा मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु।

      हटाएं
  7. तेरा आशीष मिलता रहे
    बस इतना सुधर जायें हम
    हाथ सर में रखे माँ सदा
    चरणों में जगह पायें हम....
    बेहतरीन रचना सखी 👌

    जवाब देंहटाएं

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